
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक सेवानिवृत्त कर्मचारी की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने भ्रष्टाचार के आरोप से बरी होने के बाद अपने निलंबन अवधि के बकाया वेतन की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि निचली अदालत द्वारा पहले दी गई सजा, भले ही बाद में अपील में उसे पलट दिया गया हो, पिछली अवधि के लिए वेतन का अधिकार नहीं देती है।
मामला छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के एक सेवानिवृत्त सिविल सुपरवाइजर से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक मामला दर्ज हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप उसे निलंबित कर दिया गया था। लगभग तीन साल तक मामला चलने के बाद उसका निलंबन तो रद्द कर दिया गया, लेकिन बाद में एक विशेष अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया। इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने अपील की, और अंततः उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
बरी होने के बाद, कर्मचारी ने नियम 54-B के तहत अपने निलंबन की अवधि का बकाया वेतन मांगा था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस मांग को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि नियम 54-B केवल उन मामलों में लागू होता है जहां एक कर्मचारी निलंबन के बाद दोबारा सेवा में बहाल होता है। इस विशेष मामले में, कर्मचारी को उसकी दोषसिद्धि के कारण सेवा से हटाया गया था, इसलिए यह नियम उस पर लागू नहीं होता।
उच्च न्यायालय ने “काम नहीं तो वेतन नहीं” (नो वर्क, नो पे) के सिद्धांत को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि जब कर्मचारी अपनी दोषसिद्धि के कारण काम पर उपस्थित नहीं था, तो उसे उस अवधि का वेतन प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने इस संदर्भ में पूर्व के कई न्यायिक फैसलों का भी हवाला दिया और कहा कि बाद में बरी होना भी उस पिछली अवधि के प्रभाव को समाप्त नहीं करता है जब कर्मचारी सेवा से बाहर था।
इस मामले पर टिप्पणी करते हुए उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि चूंकि नियम 54-B इस मामले में लागू नहीं होता है, इसलिए याचिकाकर्ता अपने निलंबन काल के बकाया वेतन का हकदार नहीं है। यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी नजीर स्थापित करता है जो आपराधिक आरोपों के कारण निलंबित या बर्खास्त होते हैं और बाद में बरी हो जाते हैं।