by-Ravindra Sikarwar
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। एक आग लगने की घटना के बाद उनके आवास पर कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के बाद इस मामले की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया गया है।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, जो कि एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं, हाल ही में विवादों में घिर गए हैं। यह विवाद तब शुरू हुआ जब उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर आग लगी। आग पर काबू पाने के बाद, अग्निशमन दल और पुलिस को घटनास्थल पर जांच के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी मिली, जिसके बारे में अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
इस घटना के बाद, 146 सांसदों ने एक महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए और उसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपा। सांसदों ने आरोप लगाया है कि न्यायमूर्ति वर्मा का आचरण उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है और यह भ्रष्टाचार का एक गंभीर मामला है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और अब इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे। यह समिति न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपेगी।
यदि समिति अपनी जांच में न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी पाती है, तो लोकसभा में उनके महाभियोग के लिए मतदान होगा। महाभियोग प्रस्ताव को पारित करने के लिए दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। यदि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो न्यायमूर्ति वर्मा को उनके पद से हटा दिया जाएगा।
यह घटना भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया बहुत कम ही शुरू की जाती है। यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। न्यायमूर्ति वर्मा के भविष्य का फैसला अब इस जांच समिति की रिपोर्ट और संसद के सदस्यों के मतदान पर निर्भर करेगा।