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दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई आर्थिक नीति ने वैश्विक बाजार में अस्थिरता पैदा कर दी है। अमेरिका, यूरोप और एशिया के शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई है और टैरिफ युद्ध के कारण व्यापार जगत में भारी अनिश्चितता का माहौल है।

अमेरिका चीन शुल्क युद्ध में भारत की आर्थिक स्थिति को खतरा या संभावना?
राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देते हुए 75 देशों पर शुल्क लगाने की योजना बनाई थी, जिसे फिलहाल 90 दिनों के लिए टाल दिया गया है। चीन ने इसका खुलकर विरोध किया, जिसके प्रत्युत्तर में अमेरिका ने उस पर 145% तक का कर लगा दिया। इसके परिणामस्वरूप, आज दुनिया दो खेमों में विभाजित दिखाई दे रही है – एक तरफ अमेरिका, तो दूसरी तरफ चीन। अब देखना ये है कि यदि वैश्विक मंदी आती है तो भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या यह भारत के लिए एक चुनौती साबित होगी या कोई नया अवसर लेकर आएगी?

मूल्यवान धातुओं में निवेश
बाजार में गिरावट के कारण निवेशकों ने सोने को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देखा है। जब भी आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है – जैसे मंदी, महंगाई या अंतर्राष्ट्रीय तनाव – तो लोग सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान धातुओं में निवेश करते हैं। यह एक स्थायी संपत्ति है जो महंगाई और अस्थिरता के समय में भी भरोसेमंद बनी रहती है।

कृषि क्षेत्र में सुनेहरा अवसर
भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था इस चुनौती को एक अवसर में बदल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से भारतीय कृषि निर्यातकों, विशेष रूप से कपास उत्पादकों को कुछ लाभ मिल सकता है। हालांकि, यदि अमेरिका अपने अप्रयुक्त माल को भारत में बेचने लगे, तो इससे भारतीय किसानों पर दबाव बढ़ सकता है।

उदाहरण के लिए, चीन ने अमेरिका से आयातित कृषि उत्पादों – चिकन, गेहूं, सोयाबीन आदि – पर शुल्क बढ़ा दिए हैं। जबकि भारत से चीन को सबसे अधिक कपास का निर्यात होता है, जिसका फायदा भारत को मिल सकता है। लेकिन भारत में सोयाबीन का उत्पादन सीमित है और गेहूं के निर्यात पर सरकार ने वर्तमान में रोक लगा रखी है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी
आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन वैश्विक निर्यात में इसकी भागीदारी अभी भी 2% से कम है। भारत के उच्च शुल्क और संरक्षणवादी नीतियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में इसे पीछे कर रही हैं। हालांकि, घरेलू बाजार ने इसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखा है। “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलें कुछ समय के लिए भारत के लिए एक सुरक्षा कवच बन सकती हैं, लेकिन दीर्घकालिक रूप से भारत को वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी ही होगी।

निष्कर्ष
अर्थव्यवस्था में आई वैश्विक उथल-पुथल भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा की घड़ी है। यदि सही रणनीतियों के साथ आगे बढ़ा जाए तो यह उतना ही बड़ा अवसर भी साबित हो सकता है। भारत को अपने कृषि उत्पादों, घरेलू उद्योगों और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को संतुलित करते हुए आगे बढ़ना होगा, तभी हम इस आर्थिक तूफान से सफलतापूर्वक निपट पाएंगे।

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