होलाष्टक हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि मानी जाती है, जिसे बेहद अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने से बचने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि इस समय में ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल होती है, जिससे किए गए कार्य सफल नहीं होते। आइए जानते हैं कि होलाष्टक का महत्व क्या है और इस दौरान किन कार्यों से बचना चाहिए।
होलाष्टक क्या है?
होलाष्टक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है—”होली” और “अष्टक”। इसका अर्थ होली से पहले के आठ दिनों की अवधि से है। यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और होलिका दहन के दिन समाप्त होता है। इस वर्ष होलाष्टक 7 मार्च 2025 से आरंभ होगा और 13 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नया व्यवसाय आरंभ करना, नामकरण जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन दिनों में किए गए कार्य सफल नहीं होते और कई बार नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं।
होलाष्टक को अशुभ क्यों माना जाता है?
होलाष्टक को अशुभ मानने के पीछे कई धार्मिक और ज्योतिषीय कारण बताए जाते हैं:
- ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति: इस दौरान मंगल और शनि जैसे ग्रह अशुभ स्थिति में होते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है।
- राक्षसी शक्तियों का प्रभाव: मान्यता है कि इन आठ दिनों में असुर शक्तियों का प्रभाव अधिक होता है, जिससे परिवार में कलह, मानसिक अशांति और अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- अशुभ घटनाओं का काल: पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रह्लाद पर अत्याचार करने के लिए हिरण्यकश्यप ने इन्हीं आठ दिनों में कठोर प्रयास किए थे। यही कारण है कि इसे नकारात्मकता और अशुभता से जोड़ा जाता है।
होलाष्टक के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
- शुभ कार्यों से बचें: इस समय विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, सगाई, नया व्यवसाय शुरू करने जैसे कार्य नहीं करने चाहिए।
- नए सामान की खरीदारी न करें: इस दौरान सोना-चांदी, संपत्ति, वाहन आदि खरीदना अशुभ माना जाता है।
- अशुद्ध भोजन से परहेज करें: मांसाहारी भोजन, शराब और अन्य तामसिक आहार के सेवन से बचना चाहिए।
- नकारात्मक विचारों से बचें: इस समय क्रोध, द्वेष और अन्य नकारात्मक भावनाओं से दूरी बनाए रखना चाहिए।