नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए कहा कि दृष्टिहीन व्यक्ति भी न्यायाधीश बन सकते हैं। इस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगता के आधार पर किसी को भी न्यायिक सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए नियम को निरस्त कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी न्यायपालिका में समान अवसर मिलना चाहिए। यह निर्णय देश में न्यायिक समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कोर्ट का मानना है कि शारीरिक अक्षमता को किसी व्यक्ति की योग्यता के आकलन का आधार नहीं बनाया जा सकता।
अन्य महत्वपूर्ण फैसले
छत्तीसगढ़ कोयला घोटाला मामला
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ कोयला घोटाले में निलंबित आईएएस अधिकारी रानू साहू, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सौम्या चौरसिया और व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी को अंतरिम जमानत दी है। अदालत ने कहा कि इस मामले की जांच में लंबा समय लगेगा, इसलिए आरोपियों को अंतरिम जमानत देना उचित होगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आरोपी जांच में बाधा डालते हैं, गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करते हैं, तो राज्य सरकार उनकी जमानत रद्द कराने के लिए अदालत में याचिका दायर कर सकती है।
आईटी नियमों पर जनहित याचिका
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम, 2009 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में तर्क दिया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से किसी भी जानकारी को हटाने से पहले संबंधित व्यक्ति को सूचित किया जाना चाहिए। अदालत ने केंद्र सरकार से इस पर छह हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है।
फैसले का असर
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिहीन लोगों को न्यायिक सेवाओं में शामिल करने का यह निर्णय समानता और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। इससे न केवल दिव्यांग व्यक्तियों को नए अवसर मिलेंगे, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली को अधिक समावेशी और संवेदनशील बनाएगा।