by-Ravindra Sikarwar
महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य के स्कूलों में हिंदी को ‘सामान्य’ तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने का निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है जिसने राज्य के शैक्षणिक और भाषाई परिदृश्य में व्यापक चर्चा और विभिन्न प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है। यह निर्णय महाराष्ट्र में भाषा शिक्षा नीति के भविष्य और छात्रों पर इसके प्रभाव के बारे में कई सवाल खड़े करता है।
निर्णय का सार:
महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का मूल यह है कि अब राज्य के स्कूलों में हिंदी को वैकल्पिक तीसरी भाषा के रूप में पेश किया जाएगा। इससे पहले, तीसरी भाषा के रूप में मराठी के अलावा संस्कृत, उर्दू, गुजराती, कन्नड़ आदि जैसी विभिन्न भाषाओं का विकल्प उपलब्ध था। ‘सामान्य’ तीसरी भाषा का दर्जा मिलने से हिंदी की उपलब्धता और पहुंच बढ़ जाएगी। इसका मतलब यह हो सकता है कि अब अधिक छात्र हिंदी को अपनी तीसरी भाषा के रूप में चुन पाएंगे, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हिंदी बोलने वालों की संख्या अधिक है या जहां केंद्रीय बोर्डों (सीबीएसई, आईसीएसई) से संबद्ध स्कूलों की संख्या अधिक है।
निर्णय के पीछे के तर्क:
इस निर्णय के पीछे सरकार के कई तर्क हो सकते हैं:
- राष्ट्रीय एकीकरण: हिंदी भारत की राजभाषा है और देश के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है। हिंदी को बढ़ावा देने से राष्ट्रीय एकता और विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच संचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- रोजगार के अवसर: हिंदी के ज्ञान से छात्रों के लिए देश के अन्य हिस्सों में रोजगार के अवसर खुल सकते हैं, खासकर सेवा क्षेत्र, मीडिया, और व्यापार में।
- शैक्षणिक सामंजस्य: केंद्रीय बोर्डों (सीबीएसई, आईसीएसई) से संबद्ध कई स्कूल पहले से ही हिंदी को एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में पढ़ाते हैं। इस निर्णय से राज्य बोर्ड और केंद्रीय बोर्ड के स्कूलों के बीच एक प्रकार का शैक्षणिक सामंजस्य स्थापित हो सकता है।
- जनता की मांग: संभव है कि कुछ अभिभावक और शैक्षिक संगठन ऐसे थे जो अपने बच्चों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी की अधिक सुलभता चाहते थे।
संभावित प्रभाव और प्रतिक्रियाएँ:
यह निर्णय विभिन्न वर्गों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ प्राप्त कर रहा है:
- समर्थन: कई लोग इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह छात्रों को एक ऐसी भाषा सीखने का अवसर देगा जो उन्हें देश भर में जुड़ने में मदद करेगी। हिंदी भाषी समुदायों और उन अभिभावकों में भी खुशी है जो चाहते हैं कि उनके बच्चे हिंदी में मजबूत पकड़ रखें।
- विरोध और चिंताएँ: वहीं, कुछ वर्गों द्वारा इसका विरोध भी किया जा रहा है। विरोधियों का मुख्य तर्क यह है कि यह निर्णय मराठी भाषा की स्थिति को कमजोर कर सकता है, जो महाराष्ट्र की राज्य भाषा है। उन्हें चिंता है कि हिंदी को बढ़ावा देने से अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर उन छात्रों के लिए जो पहले से ही मराठी और अंग्रेजी के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
- कुछ भाषाविद और सांस्कृतिक संगठन यह तर्क दे रहे हैं कि यह निर्णय महाराष्ट्र की भाषाई विविधता को खतरे में डाल सकता है।
- शिक्षकों के लिए भी चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें हिंदी को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए संसाधनों और प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
आगे की राह:
महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह स्कूलों में कैसे लागू होता है और छात्रों के भाषाई कौशल पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। यह भी महत्वपूर्ण होगा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि हिंदी को बढ़ावा देने से मराठी और राज्य की अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की शिक्षा और महत्व पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। संतुलन बनाए रखना ही इस नीति की सफलता की कुंजी होगी।
कुल मिलाकर, महाराष्ट्र सरकार का यह कदम भाषाई शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसके प्रभाव समय के साथ स्पष्ट होंगे।