BY: Yoganand Shrivastva
जबलपुर – मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में 2023 में 4 साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा को जबलपुर हाईकोर्ट ने 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले पर अब बाल अधिकार संरक्षण आयोग और सामाजिक संगठनों ने आपत्ति जताई है। आयोग ने कोर्ट से यह जानना चाहा है कि जब 4 साल की बच्ची पर हमला “बर्बर” माना गया, तो इसे “क्रूरता” की परिभाषा से बाहर कैसे रखा गया?
21 अप्रैल 2023: जब खंडवा कोर्ट ने सुनाया फांसी का फैसला
खंडवा की विशेष अदालत ने राजकुमार नामक आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा था कि जिस निर्ममता से आरोपी ने मासूम को निशाना बनाया, उसके लिए उम्रकैद पर्याप्त नहीं है। आदेश में कहा गया था कि “आरोपी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक कि उसके प्राण न निकल जाएं।”
19 जून 2025: हाईकोर्ट ने सजा को बदला
दो साल बाद जबलपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए सजा को 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि यह घटना “बर्बर” जरूर है, लेकिन इसे “अत्यंत क्रूर” की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। साथ ही आरोपी के शैक्षणिक और सामाजिक पिछड़ेपन को भी सजा में नरमी के लिए आधार माना गया।
कोर्ट ने कहा: “आरोपी अनुसूचित जनजाति से है, अशिक्षित है, उसे जीवन में उचित संस्कार नहीं मिल सके।”
आयोग ने उठाए सवाल
मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई है। आयोग की अध्यक्ष प्रियंका पांडे ने कहा, “अगर एक 4 साल की बच्ची के साथ ऐसी बर्बरता को भी क्रूरता नहीं माना गया, तो फिर क्रूरता की परिभाषा क्या होगी?”
पीड़ित परिवार को जानकारी नहीं
सबसे दुखद बात यह है कि बच्ची के परिजन इस फैसले से अवगत ही नहीं हैं। उन्हें यह तक नहीं बताया गया कि आरोपी की फांसी की सजा को बदल दिया गया है।
कैसे हुई थी घटना?
- घटना खंडवा जिले के उत्तर भारत ढाबा के पास की है।
- आरोपी राजकुमार, जो ढाबे पर वेटर का काम करता था, ने बच्ची के परिवार से खटिया लेकर पास के खेत में सोने की बात कही।
- सुबह वह गायब था। परिजनों ने बच्ची को गायब पाया और पुलिस को सूचना दी।
- स्निफर डॉग की मदद से पुलिस को राजकुमार पर शक हुआ।
- मोबाइल लोकेशन और पूछताछ से राजकुमार को पकड़ लिया गया।
- पूछताछ में उसने बताया कि उसने बच्ची को मारकर फेंक दिया है, लेकिन बच्ची जीवित मिली, हालांकि उसकी हालत गंभीर थी।
ट्रायल कोर्ट में फांसी का आधार क्या था?
- मेडिकल रिपोर्ट में बच्ची के शरीर पर गंभीर चोटें और गले पर नाखूनों के निशान पाए गए जो आरोपी से मेल खाते थे।
- फॉरेंसिक जांच में दुष्कर्म की पुष्टि हुई।
- अदालत ने माना कि यह घटना “अत्यधिक बर्बरता” का उदाहरण है और आरोपी समाज के लिए खतरा है।
हाईकोर्ट में बचाव पक्ष की दलीलें
- आरोपी ST वर्ग से आता है और पहली बार अपराध में लिप्त हुआ है।
- जेल में उसका व्यवहार अच्छा रहा है।
- दलील दी गई कि साक्ष्य पुलिस द्वारा बाद में तैयार किए गए थे।
सवाल जो अब उठ रहे हैं
- क्या सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर न्याय में नरमी बरती जा सकती है?
- 4 साल की बच्ची के साथ बर्बरता को “क्रूरता” नहीं मानना क्या न्याय के साथ अन्याय है?
- क्या इस तरह के फैसले पीड़ितों के विश्वास को कमजोर नहीं करते?
यह मामला ना सिर्फ कानून की व्याख्या पर बहस छेड़ता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अपराध के पीड़ितों की पीड़ा के आगे संवेदनशीलता और जवाबदेही कितनी जरूरी है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि वे मामले में आगे सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सिफारिश कर सकते हैं।