
ग्वालियर: ग्वालियर नगर निगम में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि अब नियम-कायदों का कोई मोल नहीं रह गया है। उच्च अधिकारियों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों तक, हर स्तर पर अनियमितताएं व्याप्त हैं। ‘प्रोपर न्यूज़’ की एक विशेष पड़ताल में सनसनीखेज खुलासे हुए हैं, जो यह स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि नगर निगम में सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है।
फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरी हथियाई
नगर निगम के कर्मचारियों की सूची की गहन जांच के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि कई व्यक्तियों ने कूटरचित जाति प्रमाण पत्रों का सहारा लेकर नौकरियां प्राप्त की हैं। विशेष रूप से, बाथम मांझी समुदाय के कुछ कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्रों में विरोधाभास पाया गया है; कहीं उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तो कहीं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में दर्शाया गया है।
इस गोरखधंधे का एक ज्वलंत उदाहरण प्रभुदयाल बाथम का है, जो वर्तमान में बाल भवन में भृत्य के पद पर कार्यरत हैं। पड़ताल में यह अविश्वसनीय तथ्य उजागर हुआ कि प्रभुदयाल ने अपनी नियुक्ति के समय जो जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, उसमें उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग का सदस्य बताया गया था। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रभुदयाल बाथम मांझी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिसे मध्य प्रदेश सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में अधिसूचित किया गया है।

एक ही जाति, दो अलग-अलग वर्ग – यह कैसे मुमकिन?
यह एक गंभीर और विचारणीय प्रश्न है कि जब बाथम मांझी समुदाय स्पष्ट रूप से ओबीसी वर्ग के अंतर्गत आता है, तो किसी एक व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का प्रमाणपत्र कैसे जारी कर दिया गया? और यदि ऐसा त्रुटिवश हुआ भी, तो नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान इस प्रमाणपत्र की प्रामाणिकता की गहन जांच क्यों नहीं की गई? यह चूक या मिलीभगत, दोनों ही स्थितियों में नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
आरटीआई से मिले अचूक प्रमाण
‘प्रोपर न्यूज़’ के एक जागरूक संवाददाता ने इस संदिग्ध मामले की तह तक जाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत नगर निगम से प्रभुदयाल बाथम की भर्ती से संबंधित विस्तृत जानकारी मांगी। इस आरटीआई आवेदन के जवाब में प्राप्त दस्तावेजों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि प्रभुदयाल ने वास्तव में एक फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल की है। आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों में उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया एसटी वर्ग का प्रमाणपत्र संदेहास्पद पाया गया है, जबकि उनके समुदाय की वास्तविक श्रेणी ओबीसी है।
वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण – भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें?
विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो इस पूरे फर्जीवाड़े में प्रभुदयाल को नगर निगम के कुछ आला दर्जे और उच्च पदस्थ अधिकारियों का मौन या सक्रिय संरक्षण प्राप्त है। इसी कथित संरक्षण के कारण ही प्रभुदयाल को समय-समय पर महत्वपूर्ण और आरामदायक पदों पर पदस्थापित किया जाता रहा है, जबकि उनकी नियुक्ति ही संदिग्ध है। यह संरक्षण नगर निगम के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार के गहरे गठजोड़ की ओर इशारा करता है, जहां नियमों को ताक पर रखकर चहेतों को लाभ पहुंचाया जाता है।
कानूनी और कड़ी सजा का प्रावधान
यह जान लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि यदि कोई भी व्यक्ति जानबूझकर नकली या फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी प्राप्त करता है, तो यह भारतीय कानून के तहत एक गंभीर और दंडनीय अपराध है। इस प्रकार के धोखाधड़ी और जालसाजी के कृत्यों पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) की कई महत्वपूर्ण धाराएं लागू होती हैं, जिनमें कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है:
धारा | अपराध | सजा |
---|---|---|
420 IPC | धोखाधड़ी करके संपत्ति अर्जित करना या लाभ उठाना | 7 साल तक कारावास और जुर्माना |
468 IPC | जालसाजी के उद्देश्य से फर्जी दस्तावेज बनाना | 7 साल तक कारावास और जुर्माना |
471 IPC | जाली दस्तावेज को असली के रूप में इस्तेमाल करना | 7 साल तक कारावास और जुर्माना |
417 IPC | सामान्य धोखाधड़ी | 1 साल तक कारावास और जुर्माना |
182 IPC | लोक सेवक को झूठी सूचना देना | 6 महीने तक कारावास और जुर्माना |
इन कानूनी प्रावधानों से स्पष्ट है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरी प्राप्त करना एक गंभीर अपराध है और दोषियों को कानून के अनुसार कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष: कार्रवाई का इंतजार
ग्वालियर नगर निगम में व्याप्त यह संगठित भ्रष्टाचार प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने जैसा कृत्य है। यदि समय रहते इस मामले की निष्पक्ष और गहन जांच नहीं की जाती है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है, तो यह एक खतरनाक उदाहरण स्थापित करेगा और अन्य सरकारी संस्थाओं में भी इस प्रकार की अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और भ्रष्टाचार के इस मकड़जाल को तोड़ने के लिए क्या ठोस कदम उठाता है। ग्वालियर नगर निगम की साख और कानून के शासन की रक्षा के लिए त्वरित और प्रभावी कार्रवाई की उम्मीद है।