by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: जून 2025 के शुरुआती दिनों में भारतीय शेयर बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा बड़ी निकासी देखने को मिली है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने महीने के पहले सप्ताह में भारतीय इक्विटी बाजारों से कुल ₹8,749 करोड़ निकाल लिए हैं। यह निकासी मुख्य रूप से अमेरिका और चीन के बीच फिर से बढ़े व्यापार तनाव और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में हो रही वृद्धि जैसे वैश्विक कारकों से प्रभावित है।
निकासी के प्रमुख कारण:
- अमेरिका-चीन व्यापार तनाव में वृद्धि: वैश्विक स्तर पर अमेरिका और चीन के बीच व्यापार संबंधी तनाव फिर से बढ़ गया है। दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच किसी भी तरह का गतिरोध वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता पैदा करता है। इस अनिश्चितता के माहौल में विदेशी निवेशक अधिक सुरक्षित माने जाने वाले निवेश विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे उभरते बाजारों, खासकर भारत से पूंजी की निकासी हो रही है। इस समय, दुर्लभ पृथ्वी खनिजों और सेमीकंडक्टर जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं के निर्यात पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है, जिसने निवेशकों की चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी: अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड यील्ड में लगातार वृद्धि ने भी एफपीआई की निकासी में भूमिका निभाई है। जब अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ती है, तो अमेरिकी ट्रेजरी अधिक आकर्षक निवेश विकल्प बन जाते हैं क्योंकि वे तुलनात्मक रूप से सुरक्षित और बेहतर रिटर्न प्रदान करते हैं। ऐसे में, विदेशी निवेशक भारत जैसे उभरते बाजारों से पैसा निकालकर अमेरिकी बॉन्ड में निवेश करना पसंद करते हैं, जिससे भारतीय इक्विटी बाजारों पर दबाव पड़ता है। गोल्डमैन सैक्स रिसर्च के अनुसार, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में वृद्धि के कई कारण हैं, जिनमें आर्थिक विकास की बेहतर उम्मीदें, अमेरिकी सरकार के बढ़ते कर्ज को लेकर चिंताएँ और वैश्विक बॉन्ड यील्ड में वृद्धि शामिल है।
पिछले महीनों का रुझान और कुल निकासी:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जून में हुई यह निकासी अप्रैल और मई में हुई महत्वपूर्ण एफपीआई खरीदारी के बाद आई है। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीपी ने मई में ₹19,860 करोड़ और अप्रैल में ₹4,223 करोड़ का शुद्ध निवेश किया था। हालांकि, वर्ष 2025 की शुरुआत से ही एफपीआई भारतीय बाजारों से पूंजी निकाल रहे हैं। मार्च में उन्होंने ₹3,973 करोड़, फरवरी में ₹34,574 करोड़ और जनवरी में ₹78,027 करोड़ निकाले थे। जून की इस नवीनतम निकासी के साथ, 2025 में अब तक कुल एफपीआई बहिर्वाह ₹1.01 लाख करोड़ तक पहुंच गया है।
विशेषज्ञों की राय:
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट के हिमांशु श्रीवास्तव ने बताया, “यह मंदी का रुझान अमेरिका-चीन व्यापार तनाव और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में वृद्धि से शुरू हुआ, जिसने निवेशकों को अधिक सुरक्षित संपत्तियों की ओर मोड़ा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अडानी समूह के खिलाफ ईरान पर लगे प्रतिबंधों के कथित उल्लंघन की अमेरिकी जांच की खबरों ने भी निवेशकों के विश्वास को और कम किया, जिससे प्रमुख इक्विटी सूचकांकों में गिरावट आई।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा हाल ही में रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती और CRR (नकद आरक्षित अनुपात) में 100 आधार अंकों की कमी जैसे अप्रत्याशित मौद्रिक कदमों ने बाजार के सेंटीमेंट को काफी बढ़ावा दिया है। जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार ने कहा कि अमेरिका और चीन में विकास की संभावनाएँ धूमिल दिखने के बावजूद, भारत एक लचीली अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है जो वित्त वर्ष 2026 में 6% से अधिक की वृद्धि दे सकता है। उनकी एकमात्र चिंता उच्च मूल्यांकन है, जो रैली को जारी रखने के लिए ज्यादा जगह नहीं छोड़ते।
अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव:
केवल इक्विटी ही नहीं, एफपीआई ने जून 2-6 के दौरान ऋण सामान्य सीमा से ₹6,709 करोड़ और ऋण स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग से ₹5,974 करोड़ भी निकाले हैं। विजयकुमार के अनुसार, अमेरिकी और भारतीय बॉन्ड के बीच कम यील्ड अंतर के कारण एफपीआई ऋण बाजार में भी लगातार बिकवाली कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक कारक भारतीय बाजारों में एफपीआई के प्रवाह को प्रभावित कर रहे हैं। आने वाले समय में इन वैश्विक रुझानों पर कड़ी नजर रखना महत्वपूर्ण होगा।