by-Ravindra Sikarwar
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले, भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा शुरू किया गया विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान जोर-शोर से जारी है। इस अभियान के तहत, राज्य के कुल 7.89 करोड़ (लगभग 7.90 करोड़) मतदाताओं में से 87% से अधिक मतदाताओं को गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) वितरित किए जा चुके हैं। यह प्रक्रिया 25 जून 2025 को शुरू हुई है और इसका उद्देश्य त्रुटिहीन और अद्यतन मतदाता सूची तैयार करना है।
क्या है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)?
विशेष गहन पुनरीक्षण एक व्यापक अभियान है जिसमें मतदाता सूची को पूरी तरह से अपडेट किया जाता है। इसमें बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करते हैं, नए मतदाताओं को जोड़ते हैं, और उन नामों को हटाते हैं जो अब पात्र नहीं हैं (जैसे मृतक या स्थानांतरित)।
गणना प्रपत्र का वितरण: चुनाव आयोग ने 8 करोड़ से अधिक गणना प्रपत्र बूथ-स्तरीय अधिकारियों (BLO) को सौंपे हैं, जिन्हें वे घर-घर जाकर मतदाताओं से भरवा रहे हैं। 24 जून 2025 तक नामांकित मतदाताओं में से 87% से अधिक, यानी लगभग 6.86 करोड़ मतदाताओं को ये प्रपत्र मिल चुके हैं।
प्रक्रिया और समय-सीमा:
- 25 जून 2025: विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की शुरुआत।
- 25 जुलाई 2025: पूर्व-मुद्रित गणना प्रपत्रों को भरकर जमा करने की अंतिम तिथि। जो मतदाता इस तिथि तक फॉर्म नहीं भरते, उनके नाम मतदाता सूची से काटे जा सकते हैं।
- 1 अगस्त 2025: मतदाता सूची के प्रारूप का प्रकाशन।
- 2 अगस्त 2025: प्रकाशित प्रारूप मतदाता सूची के आधार पर, दावे और आपत्तियाँ प्राप्त की जाएंगी।
- 30 सितंबर 2025: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन।
विवाद और चुनौतियां:
हालांकि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण बता रहा है, लेकिन इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी विवाद छिड़ गया है।
- दस्तावेजों की मांग: विपक्षी दलों ने चिंता जताई है कि मतदाता सत्यापन के लिए कुछ ऐसे दस्तावेजों की मांग की जा रही है, जो ग्रामीण इलाकों या गरीब परिवारों के पास आसानी से उपलब्ध नहीं होते। विशेष रूप से, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और मनरेगा कार्ड जैसे सामान्य पहचान प्रमाण अब मतदाता सत्यापन के लिए स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने इसके बजाय 11 वैकल्पिक दस्तावेजों को मान्यता दी है, जिनमें जन्म प्रमाण पत्र, भारतीय पासपोर्ट, नागरिकता प्रमाण पत्र, और कुछ सरकारी आईडी कार्ड शामिल हैं।
- विपक्ष के आरोप: विपक्षी दलों, विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया लाखों मतदाताओं, खासकर दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों के लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की एक सुनियोजित साजिश है। उनका तर्क है कि जब हाल ही में लोकसभा चुनाव इसी मतदाता सूची पर हुए थे, तो विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह के गहन पुनरीक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी।
- सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनाव आयोग के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि यह आदेश मनमाना है और अगर इसे रद्द नहीं किया गया तो लाखों मतदाताओं को उचित प्रक्रिया के बिना मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।
- चुनाव आयोग का रुख: चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह अभियान नियोजित, संगठित और चरणबद्ध तरीके से चलाया जा रहा है ताकि सभी योग्य नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल किया जा सके। आयोग ने राजनीतिक दलों से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट (BLA) तैनात करने की भी अपील की है ताकि प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बनी रहे।
इस बीच, लगभग 38 लाख भरे हुए और हस्ताक्षरित गणना प्रपत्र बीएलओ को पहले ही मिल चुके हैं। चुनाव आयोग ‘समावेशन पहले’ के सिद्धांत पर जोर दे रहा है, जिसका अर्थ है कि कोई भी योग्य मतदाता सूची से छूटना नहीं चाहिए।
यह विशेष गहन पुनरीक्षण बिहार में आगामी चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है, और इसकी सफलता राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाएगी।