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मध्य प्रदेश में शत्रु संपत्तियों का विस्तृत लेखा-जोखा: भोपाल में केवल ‘नानी की हवेली’, सीहोर में सर्वाधिक

भोपाल: मध्य प्रदेश में शत्रु संपत्तियों की कुल संख्या 583 है, जिनमें दोनों प्रकार की संपत्तियां शामिल हैं। राज्य सरकार इन संपत्तियों के प्रबंधन और स्वामित्व को लेकर सजग है। चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश की राजधानी भोपाल में केवल एक ही संपत्ति को शत्रु संपत्ति के रूप में चिन्हित किया गया है, जो कि ‘नानी की हवेली’ के नाम से जानी जाती है।

इसके विपरीत, भोपाल से सटे सीहोर जिले में शत्रु संपत्तियों की संख्या प्रदेश में सबसे अधिक है, जो कि 168 है। यह आंकड़ा इंगित करता है कि सीहोर जिले में विभाजन के समय या उसके पश्चात बड़ी संख्या में ऐसी संपत्तियां रह गईं जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए या भारतीय नागरिक नहीं रहे।

अन्य जिलों की बात करें तो मंडला, बैतूल, डिंडोरी, कटनी और जबलपुर में भी शत्रु संपत्तियों की उल्लेखनीय संख्या मौजूद है। इन जिलों में भी कई ऐसी संपत्तियां हैं जिनका कानूनी स्वामित्व जटिल बना हुआ है।

शत्रु संपत्ति क्या है?
शत्रु संपत्ति उन संपत्तियों को कहा जाता है जिनके मालिक भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए या जिन्होंने भारतीय नागरिकता त्याग दी। ऐसी संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण होता है और इनका प्रबंधन विशेष कानूनों के तहत किया जाता है।

राजधानी में कम संख्या का कारण:
भोपाल जैसे बड़े शहर में शत्रु संपत्तियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने के कई संभावित कारण हो सकते हैं। इनमें विभाजन के समय आबादी का विस्थापन, संपत्तियों का हस्तांतरण या कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वामित्व का निपटारा शामिल हो सकता है। ‘नानी की हवेली’ का शत्रु संपत्ति के रूप में चिन्हित होना इस बात का प्रमाण है कि राजधानी में भी कुछ ऐसी संपत्तियां मौजूद हैं जिनका मालिकाना हक विवादित रहा है।

सीहोर में अधिक संख्या के निहितार्थ:
सीहोर जिले में शत्रु संपत्तियों की बड़ी संख्या स्थानीय प्रशासन और सरकार के लिए एक चुनौती पेश कर सकती है। इन संपत्तियों के प्रबंधन, अतिक्रमण और संभावित विकास को लेकर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह भी जांच का विषय हो सकता है कि विभाजन के दौरान या उसके बाद सीहोर में इतनी अधिक संपत्तियां क्यों छूटी रह गईं।

आगे की राह:
मध्य प्रदेश सरकार को इन 583 शत्रु संपत्तियों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए एक स्पष्ट नीति और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है ताकि इन संपत्तियों का सार्वजनिक हित में उपयोग किया जा सके और किसी भी प्रकार के कानूनी विवाद से बचा जा सके। भोपाल और सीहोर के आंकड़ों की विषमता इस विषय पर गहन अध्ययन और उचित कार्रवाई की मांग करती है।

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