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BY: Yoganand Shrivastva

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में सरकारी स्कूलों में क्लासरूम निर्माण के नाम पर हुआ एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसकी कुल राशि लगभग 2000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस कथित स्कैम को लेकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीमें सक्रिय हो चुकी हैं। जांच एजेंसियों के अनुसार, यह मामला शिक्षा और लोक निर्माण विभाग (PWD) के पूर्व अधिकारियों और नेताओं से जुड़ा है।


क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक, साल 2015 से 2023 के बीच दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कक्षाओं की जरूरतों के आकलन में भारी गड़बड़ी की गई। जहाँ केवल 2405 क्लासरूम की आवश्यकता थी, वहां 12748 क्लासरूम बनाने की स्वीकृति दी गई — वो भी बिना आवश्यक मंजूरी या तकनीकी समीक्षा के। जांच में पाया गया कि यह अतिरिक्त निर्माण, बिना किसी वास्तविक आवश्यकता के, जानबूझकर कराया गया था।


किसके खिलाफ लगे हैं आरोप?

ACB द्वारा दर्ज एफआईआर में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री सत्येंद्र जैन समेत कई अन्य अधिकारियों और ठेकेदारों के नाम शामिल हैं। जांच एजेंसियों को संदेह है कि इन सभी ने मिलकर सरकारी धन के दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग को अंजाम दिया।


कैसे रची गई यह घोटाले की योजना?

  • जरूरत से तीन गुना अधिक कक्षाएं बनाने का प्रस्ताव पारित कराया गया।
  • निर्माण लागत में लगभग 49% तक की कृत्रिम वृद्धि दिखाई गई।
  • जानबूझकर महंगे और अनावश्यक निर्माण विकल्प चुने गए।
  • ठेकेदारों के माध्यम से फर्जी बिलिंग, डुप्लीकेट खर्च, और घोषित से अधिक भुगतान किए गए।

प्रवर्तन निदेशालय को क्या मिला छापों में?

18 जून 2025 को ED ने दिल्ली-एनसीआर के 37 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। इस कार्रवाई में मिले अहम सबूतों में शामिल हैं:

  • सरकारी विभागों की मूल फाइलें, जो निजी ठेकेदारों के पास पाई गईं।
  • PWD अधिकारियों की नकली मुहरें
  • 322 बैंक पासबुक, जो मजदूरों के नाम पर फर्जी खाते खोलकर बनाए गए थे।
  • फर्जी लेटरहेड और बिल, जो भुगतान को वैध दिखाने के लिए तैयार किए गए थे।
  • शेल कंपनियों के दस्तावेज, जिनके नाम पर भारी रकम ट्रांसफर की गई।

घोटाले का उद्देश्य क्या था?

जांच में साफ हुआ है कि इस घोटाले के पीछे का मकसद था — सरकारी फंड को ठेकेदारों और कुछ प्रभावशाली लोगों के बीच बांटना। निर्माण सामग्री की दरों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया, जिससे बजट का बड़ा हिस्सा घोटालेबाजों की जेब में जा सके।


क्या बोले जांच अधिकारी?

एक वरिष्ठ जांच अधिकारी ने बताया कि इस स्कैम में “सुनियोजित तरीके से दस्तावेज़ों में हेरफेर कर सरकारी धन का गबन किया गया।” अधिकारी के अनुसार, कुछ ऐसे कर्मचारी और अफसर शामिल पाए गए हैं, जो वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात थे और जिनके निजी हित इस प्रोजेक्ट से जुड़े हुए थे।


राजनीतिक प्रतिक्रिया और अगला कदम

इस खुलासे के बाद दिल्ली की राजनीति में घमासान मच गया है। विपक्ष ने इसे आम आदमी पार्टी सरकार की “शिक्षा मॉडल” की सच्चाई बताते हुए कार्रवाई की मांग की है। दूसरी ओर, AAP की तरफ से अब तक इस मामले में कोई औपचारिक जवाब नहीं आया है।

ED और ACB दोनों एजेंसियां अब इस घोटाले से जुड़े बैंक ट्रांजैक्शनों, ठेकेदारों की भूमिका, और नेताओं की संलिप्तता की गहराई से जांच कर रही हैं। मामले में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।


दिल्ली में सामने आया यह कथित क्लासरूम घोटाला केवल एक वित्तीय घोटाला नहीं है, बल्कि यह सरकार के जिम्मेदार विभागों में फैले व्यवस्थागत भ्रष्टाचार और अवैध गठजोड़ की कहानी भी कहता है। अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि जांच एजेंसियां इस केस में किस तरह से निष्पक्ष कार्रवाई करती हैं और दोषियों को कानून के कटघरे में लाती हैं या नहीं।

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