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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सार्वजनिक संचार के तरीके पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जाँच एजेंसियों को “निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए और निष्पक्षता व उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए।” ये टिप्पणियाँ आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता सत्येंद्र कुमार जैन द्वारा भाजपा सांसद बंसुरी स्वराज के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे में सामने आईं, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

मानहानि मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला 2023 में एक टीवी साक्षात्कार से जुड़ा है, जिसमें बंसुरी स्वराज ने कथित तौर पर कहा था कि ED की छापेमारी के दौरान जैन के आवास से ₹3 करोड़ नकद और 1.8 किलोग्राम सोना, जिसमें 133 सोने के सिक्के शामिल थे, बरामद किया गया था। दिल्ली के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस बयान को झूठा और उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाला बताया। इसके बाद उन्होंने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 के तहत मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी।

ED के ट्वीट पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणी:
ट्रायल कोर्ट द्वारा जैन की मानहानि की शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार करने के बाद, उन्होंने राउज एवेन्यू कोर्ट में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की। इस मामले का केंद्रबिंदु जून 2022 का ED का एक आधिकारिक ट्वीट था, जिसमें कहा गया था कि “सत्येंद्र कुमार जैन और अन्य” के ठिकानों पर तलाशी ली गई थी, और नकद व सोने की बरामदगी हुई थी।

कोर्ट ने गौर किया कि इस ट्वीट की भाषा “यह धारणा पैदा करती है” कि ये बरामदगियाँ जैन के अपने घर से की गई थीं, जबकि “शिकायतकर्ता के घर से कोई बरामदगी नहीं हुई थी।” विशेष न्यायाधीश जितेंद्र सिंह ने कहा, “सत्येंद्र कुमार जैन का नाम स्पष्ट रूप से लेने के बाद, ‘और अन्य’ वाक्यांश को सूक्ष्म और अस्पष्ट तरीके से शामिल किया गया है, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि बरामदगी किन लोगों के आवास से हुई है।”

बंसुरी स्वराज को क्यों मिली राहत?
न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि बंसुरी स्वराज का बयान ED के आधिकारिक ट्वीट का ही दोहराव था। कोर्ट को ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि स्वराज ने जानबूझकर कोई गलत जानकारी दी या उनकी मंशा दुर्भावनापूर्ण थी। कोर्ट ने कहा कि “दुर्भावनापूर्ण इरादे का कोई सबूत नहीं होने के कारण, यह प्रथम दृष्टया नहीं माना जा सकता कि आरोपी ने मानहानि करने के इरादे से कार्य किया।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि जाँच एजेंसियों द्वारा गुमराह करने वाले या राजनीतिक पूर्वाग्रह से भरे पोस्ट शक्ति का दुरुपयोग हो सकते हैं और ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

अदालत का अंतिम फैसला:
अंत में, कोर्ट ने जैन की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया और ED को उसकी सार्वजनिक संचार नीति को लेकर सख्त चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा, “ED जैसी जाँच एजेंसी के लिए यह अनिवार्य है कि वह निष्पक्ष रूप से कार्य करे और निष्पक्षता व उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को बनाए रखे। आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित किसी भी जानकारी का प्रसार सटीक, भ्रामक न हो और सनसनीखेज न हो।”

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