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by-Ravindra Sikarwar

कांग्रेस सांसद अंगोमचा बिमोल अकोइजम ने मणिपुर में कथित ‘बफर जोन’ (Buffer Zone) को लागू करने के लिए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इस कदम को ‘असंवैधानिक’ और ‘विभाजनकारी’ करार दिया है, जिससे राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष के और गहराने की आशंका है।

बफर जोन क्या है और विवाद क्यों?
‘बफर जोन’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में दो विरोधी गुटों या समुदायों के बीच एक सुरक्षात्मक दूरी बनाने के लिए किया जाता है। मणिपुर के संदर्भ में, यह कथित बफर जोन उन क्षेत्रों में स्थापित किया जा रहा है जहां मेइतेई (Meitei) और कुकी (Kuki) समुदायों के बीच हिंसा भड़की हुई है। इसका उद्देश्य दोनों समुदायों को एक-दूसरे से अलग रखना और सीधे टकराव को रोकना है।

हालांकि, सांसद अकोइजम का तर्क है कि इस तरह का ‘बफर जोन’ बनाना कई कारणों से समस्याग्रस्त है:

  • असंवैधानिक: अकोइजम ने जोर देकर कहा कि भारत के संविधान के तहत, किसी भी राज्य के भीतर नागरिकों को उनकी जातीयता या निवास स्थान के आधार पर अलग करना असंवैधानिक है। संविधान सभी नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में रहने और स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार देता है। बफर जोन का निर्माण नागरिकों के इन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • विभाजनकारी: यह कदम समुदायों के बीच की खाई को और बढ़ाएगा, बजाय इसके कि उन्हें करीब लाया जाए। यह ‘स्थायी विभाजन’ को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सामंजस्य और सुलह की संभावनाएं कम हो जाएंगी। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि यह समुदायों के बीच अविश्वास और शत्रुता को गहरा करेगा।
  • राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन: आलोचकों का तर्क है कि राज्य के भीतर इस तरह के ज़ोन लागू करना राज्य सरकार की स्वायत्तता और संप्रभुता का उल्लंघन है। राज्य को अपने नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के प्रशासित करने का अधिकार है।
  • मनुष्यता के खिलाफ अपराध: कुछ विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि जातीय आधार पर लोगों को अलग करना ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ की श्रेणी में भी आ सकता है, क्योंकि यह एक समुदाय को दूसरे से व्यवस्थित रूप से अलग करने का प्रयास है।

मणिपुर की वर्तमान स्थिति और पृष्ठभूमि:
मणिपुर पिछले एक साल से अधिक समय से जातीय हिंसा की चपेट में है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों विस्थापित हुए हैं। मेइतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को लेकर शुरू हुआ यह संघर्ष जल्द ही भूमि, पहचान और राजनीतिक अधिकारों को लेकर गहरे मतभेदों में बदल गया।

केंद्र सरकार ने राज्य में शांति बहाल करने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं, जिनमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती और बातचीत के प्रयास शामिल हैं। हालांकि, बफर जोन लागू करने का निर्णय इन प्रयासों में एक नया विवादास्पद मोड़ है।

सांसद अकोइजम की आलोचना इस बात को रेखांकित करती है कि शांति स्थापित करने के नाम पर किए गए कुछ उपाय अनजाने में समुदायों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं। उनका मानना है कि वास्तविक शांति तभी स्थापित हो सकती है जब सरकार सभी समुदायों के साथ मिलकर काम करे और ऐसे समाधान खोजे जो संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हों और विभाजन को बढ़ावा न दें।

यह देखना बाकी है कि केंद्र सरकार और मणिपुर प्रशासन इस आलोचना पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या वे बफर जोन की अपनी नीति पर पुनर्विचार करते हैं।

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