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by-Ravindra Sikarwar

चंडीगढ़: चंडीगढ़ में मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव को लेकर एक बड़ा बदलाव आया है। अब इन महत्वपूर्ण पदों के लिए मतदान गुप्त मतपत्र (secret ballot) के बजाय ‘हाथ उठाकर’ (show of hands) किया जाएगा। चंडीगढ़ प्रशासक ने इस संबंध में एक संशोधन को मंजूरी दे दी है, जिससे भविष्य में होने वाले नगर निगम चुनावों की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन साथ ही इसके राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे होंगे।

क्या है नया संशोधन?
चंडीगढ़ नगर निगम (Mayor and Deputy Mayor Election) नियम, 2016 में यह महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। पहले, मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव नगर निगम के पार्षदों द्वारा गुप्त मतपत्र के माध्यम से होता था। इस प्रक्रिया में, पार्षदों को अपनी पसंद के उम्मीदवार को चिह्नित करना होता था, और उनका वोट गुप्त रहता था।

नए संशोधन के अनुसार, अब चुनाव अधिकारी (presiding officer) उम्मीदवारों के नाम पुकारेंगे और प्रत्येक पार्षद को अपने पसंदीदा उम्मीदवार के समर्थन में हाथ उठाकर मतदान करना होगा। यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही होगी जैसी आमतौर पर संसद या विधानसभाओं में कुछ विधेयकों या प्रस्तावों पर ध्वनि मत या हाथ उठाकर मतदान होता है।

संशोधन का उद्देश्य: पारदर्शिता और जवाबदेही
चंडीगढ़ प्रशासन का कहना है कि इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। गुप्त मतदान अक्सर क्रॉस-वोटिंग (cross-voting) और हॉर्स-ट्रेडिंग (horse-trading) के आरोपों को जन्म देता था, जहां पार्षद अपनी पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर मतदान कर सकते थे। ‘हाथ उठाकर’ मतदान होने से, प्रत्येक पार्षद का वोट सार्वजनिक हो जाएगा, जिससे दल-बदल या क्रॉस-वोटिंग की संभावना कम हो जाएगी।

प्रशासन का मानना है कि यह कदम चुनाव प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बढ़ाएगा और चुने हुए प्रतिनिधियों को अपने दल के प्रति अधिक जवाबदेह बनाएगा।

राजनीतिक निहितार्थ और विवाद की संभावना:
हालांकि, इस बदलाव के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं और यह विवादों को भी जन्म दे सकता है।

  • राजनीतिक दलों का नियंत्रण: ‘हाथ उठाकर’ मतदान से राजनीतिक दल अपने पार्षदों पर अधिक नियंत्रण रख पाएंगे। क्रॉस-वोटिंग की संभावना कम होने से, पार्टी व्हिप का उल्लंघन करना मुश्किल हो जाएगा। यह सत्तारूढ़ दल के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि वे अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में अधिक सक्षम होंगे।
  • पार्षदों की स्वतंत्रता पर असर: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव पार्षदों की मतदान की स्वतंत्रता को कम कर सकता है। उन्हें अपनी पार्टी के दबाव में मतदान करना पड़ सकता है, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से किसी अन्य उम्मीदवार का समर्थन करना चाहते हों।
  • विपक्ष की चिंताएं: विपक्षी दल इस कदम को सत्ताधारी दल द्वारा अपने फायदे के लिए नियमों में बदलाव के रूप में देख सकते हैं। उनका तर्क हो सकता है कि गुप्त मतदान ही लोकतंत्र में स्वस्थ परंपरा है, क्योंकि यह प्रतिनिधियों को बिना किसी डर या दबाव के मतदान करने की अनुमति देता है।

पृष्ठभूमि: हालिया मेयर चुनाव का विवाद
यह संशोधन ऐसे समय में आया है जब हाल ही में हुए चंडीगढ़ मेयर चुनाव ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं। उस चुनाव में अवैध मतपत्रों (invalid votes) को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया में अनियमितताओं को देखते हुए परिणामों को रद्द कर दिया था और फिर से गिनती का आदेश दिया था, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार को विजेता घोषित किया गया था।

इस घटना के बाद, चुनाव प्रक्रिया में सुधार की मांग तेज हो गई थी, और यह नया संशोधन उसी दिशा में एक कदम प्रतीत होता है। प्रशासन संभवतः भविष्य में ऐसे विवादों से बचने और चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए यह कदम उठा रहा है।

आगे क्या?
इस संशोधन के लागू होने के साथ, चंडीगढ़ में अगले मेयर और डिप्टी मेयर चुनावों में एक नई प्रक्रिया देखने को मिलेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव चुनावी परिणामों को कैसे प्रभावित करता है और राजनीतिक दल इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही के तर्क के बावजूद, यह कदम निश्चित रूप से राजनीतिक बहस का एक नया अध्याय खोलेगा।

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