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ग्वालियर: चंबल नदी, जो अपनी स्वच्छ धारा और जैव विविधता के लिए जानी जाती है, अब अवैध रेत खनन के कारण गंभीर संकट में है। न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के प्रतिबंधों के बावजूद, रेत माफिया लगातार चंबल के तटों को खोखला कर रहे हैं। इस अनियंत्रित खनन के कारण न केवल नदी का प्रवाह बाधित हो रहा है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ने के कगार पर है।

विशेष रूप से, चंबल में स्थित घड़ियाल और डॉल्फिन सेंचुरी को इससे भारी नुकसान पहुंच रहा है। कई स्थानों पर नदी की धारा टूट रही है, जिससे जलजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है, लेकिन प्रशासन और सरकार अब तक ठोस कार्रवाई करने में असफल रही है।

रेत माफिया का कहर: चंबल नदी का अस्तित्व खतरे में
श्योपुर, सबलगढ़, अंबाह, पोरसा, भिंड के अटेर और उसेद घाट तक अवैध रेत खनन अपने चरम पर है। माफिया द्वारा अंधाधुंध खुदाई से कई स्थानों पर चंबल की धारा टूटने लगी है। अदालत और एनजीटी के आदेशों के बावजूद, अब तक रेत माफिया के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया है, जिससे उनके हौसले और बुलंद हो गए हैं।

एनजीटी और अदालत के सख्त निर्देश
एनजीटी और अदालत ने चंबल नदी और राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को संरक्षित रखने के लिए सख्त आदेश दिए हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को अवैध खनन पूरी तरह रोकने के निर्देश दिए गए हैं।

इसके तहत, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, धौलपुर, भरतपुर, आगरा, इटावा और झांसी के जिला कलेक्टरों और पुलिस अधिकारियों को निगरानी बढ़ाने और माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश मिले हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि खनन अब भी तेजी से जारी है, जिससे यह आदेश सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं।

खनन से चंबल के पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान

विशेषज्ञों के अनुसार, अवैध रेत खनन के कारण:
नदी का तल तेजी से क्षरित हो रहा है, जिससे उसकी गहराई कम होती जा रही है।
नदी का प्रवाह बाधित हो रहा है, जिससे जल प्रवाह कई स्थानों पर रुक गया है।
जलजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है, जिससे उनकी आबादी पर संकट बढ़ रहा है।
पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है, जिससे जलजीवों के अस्तित्व को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है, जिससे आसपास के पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

अगर अवैध खनन नहीं रुका, तो निकट भविष्य में चंबल नदी और इससे जुड़े जीवों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।

घड़ियाल, डॉल्फिन और कछुओं पर मंडराता खतरा
चंबल नदी में घड़ियाल, गैंगेटिक डॉल्फिन और कछुओं की दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन अवैध खनन के कारण ये जीव संकट में हैं।

❖ घड़ियाल और कछुए – ये जीव रेत पर अंडे देते हैं, लेकिन खनन के कारण उनके अंडे नष्ट हो रहे हैं। अगर यह स्थिति जारी रही, तो इनकी संख्या तेजी से घट सकती है।

❖ गैंगेटिक डॉल्फिन – यह दुर्लभ डॉल्फिन साफ पानी में ही जीवित रह सकती है, लेकिन खनन से पानी में प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे इनकी आबादी खतरे में पड़ गई है।

❖ पक्षी भी संकट में – स्कीमर, ब्लैक बैली टर्न और रिवर टर्न जैसे पक्षी भी रेत पर ही अंडे देते हैं, लेकिन रेत खनन से इनका प्रजनन चक्र भी प्रभावित हो रहा है।

क्या होना चाहिए समाधान?

✔ सरकार को अवैध खनन रोकने के लिए सख्त कानून लागू करने होंगे
स्थानीय प्रशासन और पुलिस को जिम्मेदारी लेनी होगी और रेत माफिया पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
सीमावर्ती राज्यों को संयुक्त अभियान चलाना होगा, ताकि माफिया राज्य की सीमा बदलकर बच न सकें।
नदी संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए और इसके लिए विशेष पर्यावरण योजनाएं चलाई जाएं।
जनता को जागरूक किया जाए कि अवैध खनन से सिर्फ सरकार नहीं, बल्कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो चंबल नदी और इससे जुड़े जीवों का अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा। चंबल केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक अनमोल प्राकृतिक धरोहर है, जिसे बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

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