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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: केंद्र सरकार देश में संपत्ति पंजीकरण की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और इसे सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से एक नए विधेयक का प्रस्ताव कर रही है। यह पहल नागरिकों के लिए संपत्ति लेनदेन को सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और प्रणालीगत दक्षता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इसका लक्ष्य पंजीकरण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, कुशल और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है।

वर्तमान प्रणाली की चुनौतियाँ:
वर्तमान में, भारत में संपत्ति पंजीकरण एक जटिल, समय लेने वाली और अक्सर मानवीय हस्तक्षेप पर अत्यधिक निर्भर प्रक्रिया है। इसमें कई चरणों में कागजी कार्रवाई, विभिन्न सरकारी कार्यालयों का दौरा और लंबी कतारें शामिल होती हैं। राज्यों के कानूनों और प्रक्रियाओं में भिन्नता के कारण भी यह प्रक्रिया देशव्यापी स्तर पर जटिल बनी हुई है। इस मैन्युअल प्रणाली में त्रुटियों की संभावना अधिक होती है, और धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार के लिए भी गुंजाइश बनी रहती है। इसके चलते नागरिकों को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है और संपत्ति संबंधी विवादों की संख्या भी बढ़ती है।

प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य और प्रावधान:
प्रस्तावित नया विधेयक इन सभी चुनौतियों का समाधान करने की दिशा में डिज़ाइन किया गया है। इसके मुख्य उद्देश्य और संभावित प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. ऑनलाइन पंजीकरण: विधेयक एक केंद्रीकृत ऑनलाइन मंच बनाने की परिकल्पना करता है, जहां संपत्ति की खरीद-बिक्री से लेकर उसके पंजीकरण तक की सभी औपचारिकताएं डिजिटल रूप से पूरी की जा सकेंगी। इससे भौतिक रूप से रजिस्ट्रार कार्यालय जाने की आवश्यकता कम हो जाएगी।
  2. मानकीकरण: यह विधेयक पूरे देश में संपत्ति पंजीकरण की प्रक्रिया में एकरूपता लाने का प्रयास करेगा। इससे अंतर-राज्यीय संपत्ति लेनदेन भी आसान हो जाएंगे और कानूनी अस्पष्टता कम होगी।
  3. पारदर्शिता और सुरक्षा: डिजिटल रिकॉर्ड और लेनदेन की ट्रैकिंग से प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे बेनामी लेनदेन और धोखाधड़ी की संभावना कम होगी। ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों के उपयोग पर भी विचार किया जा सकता है ताकि रिकॉर्ड की अखंडता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  4. दक्षता और गति: ऑनलाइन प्रणाली से पंजीकरण प्रक्रिया में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा। इससे नागरिकों और व्यवसायों दोनों के लिए ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ में सुधार होगा।
  5. विवाद समाधान: स्पष्ट और डिजिटल रूप से दर्ज किए गए संपत्ति रिकॉर्ड से भविष्य में होने वाले संपत्ति संबंधी विवादों और मुकदमों में कमी आने की उम्मीद है।
  6. राजस्व संग्रह: प्रक्रिया के मानकीकरण और डिजिटलीकरण से सरकार के लिए स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क जैसे राजस्व का कुशल संग्रह सुनिश्चित हो सकेगा।

‘डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ (DILRMP) से जुड़ाव:
यह नया विधेयक कोई अकेली पहल नहीं है। यह पहले से चल रहे ‘डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP)’ को पूरक करेगा। DILRMP का उद्देश्य भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, उनके रखरखाव में सुधार और भू-राजस्व प्रशासन की दक्षता बढ़ाना है। प्रस्तावित विधेयक इस प्रयास को एक कदम आगे ले जाएगा, जिसमें संपत्ति के स्वामित्व के पंजीकरण की अंतिम प्रक्रिया को भी डिजिटल दायरे में लाया जाएगा, जिससे भूमि संबंधी सभी जानकारी एक ही मंच पर उपलब्ध हो सके।

आगे की राह और चुनौतियाँ:
यह विधेयक यदि कानून बन जाता है और प्रभावी ढंग से लागू होता है, तो भारत के रियल एस्टेट बाजार में क्रांति ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करने में कुछ चुनौतियाँ भी होंगी, जिनमें डिजिटल साक्षरता का अभाव, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना, और बड़े पैमाने पर डेटा सुरक्षा व गोपनीयता बनाए रखना प्रमुख हैं। मौजूदा मैन्युअल सिस्टम से जुड़े हितधारकों से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।

केंद्र सरकार का यह कदम देश में संपत्ति लेनदेन के तरीके को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो इसे 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाएगा।

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