by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: बच्चों में तेजी से बढ़ते मोटापे और टाइप-2 मधुमेह के मामलों के मद्देनजर, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य पहल की शुरुआत की है। इस पहल के तहत, बोर्ड ने अपने सभी संबद्ध स्कूलों को ‘शुगर बोर्ड’ (Sugar Boards) स्थापित करने का निर्देश दिया है। इसका प्राथमिक लक्ष्य छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के बीच अत्यधिक चीनी के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है और उन्हें स्वस्थ आहार विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
बढ़ती स्वास्थ्य चिंताएं: एक गंभीर चुनौती
पिछले कुछ वर्षों में, भारत में बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, जिसमें टाइप-2 मधुमेह और मोटापे के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। पहले ये बीमारियाँ मुख्य रूप से वयस्कों से जुड़ी थीं, लेकिन अब इनका प्रभाव कम उम्र के बच्चों में भी दिख रहा है। सीबीएसई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 4 से 10 वर्ष के बच्चे अपनी दैनिक कैलोरी का लगभग 13% और 11 से 18 वर्ष के किशोर लगभग 15% चीनी से प्राप्त कर रहे हैं। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 5% की सीमा से कहीं अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ते स्वास्थ्य संकट का मुख्य कारण बच्चों की बदलती खान-पान की आदतें और जीवनशैली है। स्कूलों और उनके आसपास आसानी से उपलब्ध अस्वास्थ्यकर स्नैक्स, प्रोसेस्ड फूड और मीठे पेय पदार्थ इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में, सीबीएसई ने प्रारंभिक स्तर पर ही बच्चों में स्वस्थ आहार विकल्पों के प्रति जागरूकता लाने का निर्णय लिया है।
‘शुगर बोर्ड’ क्या हैं और उनका उद्देश्य क्या है?
सीबीएसई द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार, ‘शुगर बोर्ड’ एक शैक्षिक डिस्प्ले बोर्ड होगा, जिसे स्कूल परिसर में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा। इन बोर्डों का मुख्य उद्देश्य छात्रों को अत्यधिक चीनी के सेवन के जोखिमों के बारे में जागरूक और शिक्षित करना होगा। बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि इन ‘शुगर बोर्डों’ पर निम्नलिखित आवश्यक जानकारी प्रदर्शित की जानी चाहिए:
- बच्चों के लिए अनुशंसित दैनिक चीनी की मात्रा (Recommended Daily Sugar Intake): बच्चों को स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन कितनी चीनी का सेवन करना चाहिए, इसकी स्पष्ट जानकारी।
- आमतौर पर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में चीनी की मात्रा: लोकप्रिय खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में मौजूद चीनी की मात्रा का खुलासा, ताकि बच्चे और अभिभावक सूचित विकल्प चुन सकें।
- ज्यादा चीनी के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम: अत्यधिक चीनी के सेवन से होने वाली बीमारियों जैसे टाइप-2 मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग, दांतों की समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में विस्तृत जानकारी।
- स्वस्थ आहार विकल्प: फलों, साबुत अनाज, सब्जियों और कम-चीनी वाले स्नैक्स जैसे स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देना।
- अनुसंधान से पुष्ट बढ़ती स्वास्थ्य चिंताएं: हालिया शोध और आंकड़ों के आधार पर बच्चों में बढ़ते स्वास्थ्य जोखिमों पर प्रकाश डालना।
जागरूकता कार्यक्रमों का महत्व
सीबीएसई ने स्कूलों को केवल ‘शुगर बोर्ड’ स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रखा है। बोर्ड ने स्कूलों को छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए जागरूकता सेमिनार और कार्यशालाएं आयोजित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। इन सत्रों में पोषण विशेषज्ञ, डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं, जो संतुलित आहार, चीनी के विकल्पों और स्वस्थ जीवनशैली के महत्व पर मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। सभी स्कूलों को 15 जुलाई, 2025 तक इन गतिविधियों की रिपोर्ट और तस्वीरें सीबीएसई को प्रस्तुत करनी होंगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पहल को गंभीरता से लागू किया जा रहा है।
राष्ट्रव्यापी प्रभाव और भविष्य की उम्मीदें
देश भर के कई स्कूलों ने सीबीएसई की इस पहल का स्वागत किया है। कई स्कूलों ने पहले से ही अपनी कैंटीनों में जंक फूड पर प्रतिबंध लगाने और स्वस्थ भोजन विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। ‘शुगर बोर्ड’ की स्थापना से यह प्रयास और भी मजबूत होगा और एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का रूप ले सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 122वें एपिसोड में सीबीएसई के इस फैसले की सराहना की है, जिससे इस पहल को और अधिक बल मिला है। यह उम्मीद की जाती है कि यह पहल बच्चों को प्रारंभिक स्तर पर ही स्वस्थ भोजन की आदतों को अपनाने और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने में मदद करेगी, जिससे भारत में आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकेगा।
यह पहल केवल स्कूलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अभिभावकों और पूरे समुदाय को बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने और स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए प्रेरित करेगी।