Spread the love

इंदौर: प्रशासन ने फसल अवशेष, जिसे आमतौर पर पराली कहा जाता है, को जलाने वाले किसानों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई शुरू की है। इस अभियान के तहत, प्रशासन ने न केवल किसानों पर भारी जुर्माना लगाया है, बल्कि कई खेत मालिकों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) भी दर्ज करना शुरू कर दिया है। पिछले चार दिनों में ही, जिले में पराली जलाने के 770 मामलों में किसानों पर कुल 16.71 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

इंदौर के जिलाधिकारी आशीष सिंह ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा, “हम खेतों में पराली जलाने की गतिविधियों के खिलाफ सख्त कदम उठा रहे हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में पराली जलाने से इंदौर शहर की वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जबकि इंदौर देश के सबसे स्वच्छ शहरों में शुमार होता है।

जिलाधिकारी आशीष सिंह ने पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत एक प्रतिबंधात्मक आदेश भी जारी किया है। अधिकारी ने इस आदेश का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, “यह आदेश पराली जलाने से पर्यावरण, जनजीवन और जीव-जंतुओं को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जारी किया गया है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर जिले में संबंधित खेत मालिकों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं। इस धारा के तहत, दोषी पाए जाने पर एक साल तक की जेल की सजा, 5,000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों ही सजाएं दी जा सकती हैं।

हालांकि, पराली जलाने वाले किसानों पर भारी जुर्माना लगाने के प्रशासन के इस कदम का कृषक संगठन विरोध कर रहे हैं। पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक रामस्वरूप मंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “हम भी मानते हैं कि खेतों में पराली जलाना गलत है, लेकिन किसानों पर अचानक इतना बड़ा जुर्माना लगाना भी उचित नहीं है।” उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों से आग्रह किया कि वे गांवों में जाएं और किसानों को पराली को नष्ट करने के लिए अन्य व्यवहार्य उपाय सुझाएं और उनमें मदद करें। किसानों का तर्क है कि पराली प्रबंधन के लिए उन्हें पर्याप्त और सुलभ विकल्प उपलब्ध नहीं कराए गए हैं, जिसके कारण वे मजबूर होकर इसे जलाते हैं।

प्रशासन की यह कठोर कार्रवाई वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति उसकी गंभीरता को दर्शाती है। वहीं, किसान संगठनों का विरोध इस मुद्दे की जटिलता और किसानों की व्यावहारिक कठिनाइयों को उजागर करता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन और किसान संगठन इस समस्या का कोई सर्वमान्य और टिकाऊ समाधान कैसे निकालते हैं, जिससे पर्यावरण की भी रक्षा हो और किसानों पर भी अनावश्यक आर्थिक बोझ न पड़े।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× Whatsapp