by-Ravindra Sikarwar
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) के 337 टन जहरीले कचरे को मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के एक संयंत्र में सफलतापूर्वक भस्म कर दिया गया है। यह 1984 की उस भयावह आपदा से संबंधित एक लंबे समय से लंबित पर्यावरणीय मुद्दे को संबोधित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली थी और लाखों को प्रभावित किया था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और कचरे का मुद्दा:
भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुई थी, जब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था। यह दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक थी। आपदा के बाद, संयंत्र को बंद कर दिया गया था, लेकिन इसके परिसर में सैकड़ों टन जहरीला रासायनिक कचरा पड़ा रहा, जो दशकों से पर्यावरण और स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ था।
यह कचरा मिट्टी और भूजल को दूषित कर रहा था, जिससे आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही थीं। विभिन्न अदालती आदेशों और सामाजिक कार्यकर्ताओं व पीड़ितों के लगातार दबाव के बावजूद, इस कचरे के निपटान का मुद्दा कई वर्षों तक अनसुलझा रहा।
निपटान की प्रक्रिया और ‘पीथमपुर’ का चयन:
इस जहरीले कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए कई वर्षों तक विभिन्न विकल्पों पर विचार किया गया। अंततः, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) की देखरेख में और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशानिर्देशों के तहत, इसे पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड (Ramky Enviro Engineers Ltd.) के इनसिनरेटर (भस्मीकरण संयंत्र) में नष्ट करने का निर्णय लिया गया।
- सुरक्षित परिवहन: कचरे को भोपाल से पीथमपुर तक विशेष रूप से डिजाइन किए गए, सील बंद कंटेनरों में अत्यंत सुरक्षा उपायों के साथ ले जाया गया।
- उच्च तापमान भस्मीकरण: पीथमपुर संयंत्र में इस कचरे को उच्च तापमान पर भस्म (Incineration) किया गया। इनसिनरेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जैविक पदार्थों और खतरनाक अपशिष्टों को उच्च तापमान पर जलाया जाता है, जिससे वे राख और गैसों में बदल जाते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी हानिकारक उत्सर्जन वायुमंडल में न जाए, संयंत्र में उन्नत वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियाँ (APCS) स्थापित हैं।
- पर्यावरणीय निगरानी: भस्मीकरण प्रक्रिया के दौरान और बाद में, पर्यावरणीय मानकों की लगातार निगरानी की गई ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी हानिकारक पदार्थ पर्यावरण में न फैले।
महत्व और आगे की राह:
यह कदम कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- पर्यावरणीय राहत: यह दशकों से भोपाल के पर्यावरण और भूजल को दूषित कर रहे एक बड़े खतरे को समाप्त करता है।
- न्याय की दिशा में कदम: यह उन हजारों पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए एक सांकेतिक जीत है जो इस कचरे के निपटान की मांग कर रहे थे।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: यह भारत की अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को भी दर्शाता है।
- पुराने जख्मों पर मरहम: यद्यपि यह त्रासदी के पीड़ितों के लिए पूर्ण न्याय नहीं है, फिर भी यह उस त्रासदी से जुड़े एक बड़े पर्यावरणीय बोझ को कम करता है।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल एक हिस्सा है। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए मुआवजे, चिकित्सा देखभाल और पुनर्वास जैसे अन्य मुद्दे अभी भी पूरी तरह से हल नहीं हुए हैं। यह कदम एक बड़ी पर्यावरणीय चिंता को दूर करता है, लेकिन त्रासदी का मानवीय पहलू अभी भी पूर्ण समाधान की प्रतीक्षा कर रहा है।