by-Ravindra Sikarwar
जबलपुर, मध्य प्रदेश: भारत में 9 जुलाई, बुधवार को एक बड़े राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया गया है, जिसमें 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के शामिल होने की उम्मीद है। विभिन्न औद्योगिक और संगठित क्षेत्रों से जुड़े श्रमिक अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए यह हड़ताल करेंगे। यह बंद देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
हड़ताल का आह्वान और प्रमुख मांगें:
इस ‘भारत बंद’ का आह्वान केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के एक संयुक्त मंच ने किया है। इसमें मुख्य रूप से ये मांगें शामिल हैं:
- श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध: केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए और प्रस्तावित श्रम संहिता (Labour Codes) परिवर्तनों का जोरदार विरोध किया जा रहा है। यूनियनों का आरोप है कि ये बदलाव श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं और उन्हें कॉरपोरेट जगत के पक्ष में धकेलते हैं। वे मांग कर रहे हैं कि श्रमिक-विरोधी प्रावधानों को रद्द किया जाए।
- निजीकरण पर रोक: सरकारी कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के निजीकरण की प्रक्रिया को रोकने की मांग की जा रही है। श्रमिक नेताओं का तर्क है कि निजीकरण से रोजगार के अवसर कम होते हैं और श्रमिकों का शोषण बढ़ता है।
- पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली: रेलवे, बैंक, बीमा और रक्षा क्षेत्र सहित कई सरकारी विभागों के कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं, जो उनके बुढ़ापे के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
- न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि: सभी क्षेत्रों में न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाने और श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी सुनिश्चित करने की मांग भी प्रमुख है।
- ठेका प्रथा का उन्मूलन: यूनियनों की मांग है कि ठेका श्रमिक प्रथा को समाप्त किया जाए और सभी श्रमिकों को स्थायी रोजगार और समान वेतन दिया जाए।
- किसान विरोधी कानूनों का निरस्तीकरण (यदि प्रासंगिक हो): हालांकि यह मुख्य रूप से श्रमिकों की हड़ताल है, लेकिन किसान संगठनों द्वारा पूर्व में किए गए विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में कुछ श्रमिक संगठन कृषि कानूनों (यदि सरकार ने कुछ नए कानून लाए हों) को रद्द करने की मांग भी उठा सकते हैं।
कौन-कौन से क्षेत्र होंगे प्रभावित?
इस बंद से कई महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रभावित होने की संभावना है, जिनमें शामिल हैं:
- बैंक और वित्तीय सेवाएँ: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों के कर्मचारी इस हड़ताल में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं, जिससे बैंकिंग सेवाओं पर असर पड़ सकता है।
- परिवहन: सड़क परिवहन, रेलवे (कुछ हद तक) और अन्य सार्वजनिक परिवहन सेवाएं बाधित हो सकती हैं, जिससे यात्रियों को परेशानी हो सकती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम: कोयला, इस्पात, रक्षा उत्पादन, बिजली, और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपक्रमों में काम बंद हो सकता है।
- सरकारी विभाग: केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल हो सकते हैं।
- औद्योगिक क्षेत्र: विनिर्माण इकाइयों, कारखानों और औद्योगिक क्षेत्रों में काम ठप हो सकता है।
- बंदरगाह और डॉक: बंदरगाहों पर भी काम प्रभावित हो सकता है, जिससे माल ढुलाई पर असर पड़ेगा।
सरकार और यूनियनों के बीच बातचीत:
हड़ताल को टालने के लिए केंद्र सरकार और ट्रेड यूनियनों के बीच बातचीत के प्रयास पहले भी होते रहे हैं। हालांकि, इस बार 9 जुलाई को होने वाले बंद से पहले अंतिम समय तक किसी समझौते की संभावना कम ही दिख रही है। यूनियनों का कहना है कि सरकार उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं कर रही है।
आम जनता पर प्रभाव:
इस राष्ट्रव्यापी बंद का आम जनता के दैनिक जीवन पर सीधा असर पड़ेगा। परिवहन सेवाओं में व्यवधान, बैंकिंग सुविधाओं की अनुपलब्धता और बाजारों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बंद रहने से लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। सरकार और संबंधित प्राधिकरणों ने नागरिकों से सहयोग करने और वैकल्पिक व्यवस्थाएं करने का आग्रह किया है।
यह बंद एक बार फिर सरकार की नीतियों और श्रमिक वर्ग की चिंताओं के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करता है। अब देखना यह होगा कि 9 जुलाई को यह हड़ताल कितनी सफल रहती है और इसके बाद सरकार का क्या रुख होता है।