
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज, मंगलवार (22 अप्रैल, 2025) सुनवाई करेगा। इस मामले में सोमवार को एक नया आवेदन दाखिल किया गया है, जिसमें केंद्र सरकार से राज्यपाल से रिपोर्ट मांगने और राज्य में अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का आग्रह किया गया है।
रंजना अग्निहोत्री और जितेंद्र सिंह बिसेन द्वारा 2021 में पश्चिम बंगाल की कथित खराब कानून-व्यवस्था, राजनीतिक हिंसा और हत्याओं को लेकर दायर याचिका पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने न्यायालय को बताया कि नए आवेदन में केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत राज्यपाल से रिपोर्ट मांगने का निर्देश देने की मांग की गई है।
‘हम पर लग रहे सरकार के कामकाज में दखल के आरोप’, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष यह मांग रखी गई। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान वह अपनी बात रख सकते हैं। न्यायपालिका पर सरकार के कामकाज में दखल देने के आरोपों के बीच, जस्टिस गवई ने कहा, “हम पर पहले ही कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण का आरोप लग रहा है। आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को निर्देश दें?”
क्या है अनुच्छेद 355, जिसकी विष्णु शंकर जैन ने की है मांग?
नए आवेदन में पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की समिति को सौंपने की भी मांग की गई है। इसके साथ ही राज्य में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अनुच्छेद 355 के तहत राज्यपाल से राज्य की कानून व्यवस्था पर रिपोर्ट मांगने का आग्रह किया गया है। यदि राज्यपाल ऐसी रिपोर्ट में किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था के चरमरा जाने की जानकारी देते हैं, तो अनुच्छेद 356 के तहत उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग तेज
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, “कल की सूची में मद संख्या 42 पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने से संबंधित है। यह याचिका मैंने दायर की है। उस याचिका में मैंने पश्चिम बंगाल राज्य में हुई हिंसा की कुछ और घटनाओं को सामने लाने संबंधी अभियोग और निर्देश के लिए एक अंतरिम आवेदन दायर किया है।” अंतरिम आवेदन एक औपचारिक कानूनी अनुरोध होता है जो अंतरिम आदेश या निर्देश प्राप्त करने के लिए न्यायालय की कार्यवाही के दौरान दायर किया जाता है।
मुर्शिदाबाद हिंसा की रिटायर्ड जज से जांच की मांग
विष्णु शंकर जैन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2021 की उनकी याचिका पर पहले ही नोटिस जारी कर दिया था। उन्होंने कहा, “जब मामले पर सुनवाई होगी तो बताएंगे कि हिंसा कैसे हुई।” एक नई याचिका में अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि 2022 से अप्रैल 2025 तक हुई हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघनों और महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं, विशेष रूप से मुर्शिदाबाद में हालिया हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की नियुक्ति की जाए। आवेदन में केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वह पश्चिम बंगाल को अनुच्छेद 355 के तहत आवश्यक निर्देश जारी करने पर विचार करे।
अनुच्छेद 355 क्या है?
अनुच्छेद 355 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। इसके अनुसार, यह केंद्र सरकार का कर्तव्य होगा कि वह प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए और यह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चले। इस अनुच्छेद के तहत, केंद्र सरकार को राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर रिपोर्ट मांगने और आवश्यक समझे तो हस्तक्षेप करने का अधिकार मिलता है।
अनुच्छेद 355 से क्या बदल सकता है?
यदि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को अनुच्छेद 355 के तहत पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से रिपोर्ट मांगने का निर्देश देता है, तो यह राज्य की मौजूदा कानून-व्यवस्था की स्थिति का आधिकारिक आकलन करने की दिशा में पहला कदम होगा। राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर, केंद्र सरकार को यह तय करने का अधिकार मिल जाएगा कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कोई और कार्रवाई आवश्यक है या नहीं। यदि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट में राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होने की बात कहते हैं, तो अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राज्य सरकार बर्खास्त हो जाती है और राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर राज्य का प्रशासन चलाते हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस मामले में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है और यह देखना होगा कि न्यायालय इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या निर्देश देता है।