by-Ravindra Sikarwar
गुवाहाटी, असम: असम में बाल विवाह के खिलाफ छेड़ा गया अभियान रंग ला रहा है। राज्य सरकार के कड़े रुख और प्रभावी कानूनी कार्रवाई के कारण बाल विवाह के मामलों में उल्लेखनीय 81% की कमी दर्ज की गई है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 2026 तक राज्य से बाल विवाह को पूरी तरह से खत्म करने का दृढ़ संकल्प लिया है और इस दिशा में तेजी से काम जारी है।
अभियान की सफलता के आंकड़े:
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (ICP) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 और 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह की घटनाओं में 81% की भारी गिरावट आई है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जो राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता को दर्शाती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अध्ययन किए गए गांवों में बाल विवाह के मामले 2021-22 में 3,225 से घटकर 2023-24 में 627 रह गए हैं। कुछ गांवों में तो बाल विवाह का पूरी तरह से उन्मूलन हो चुका है, जबकि 40% गांवों में इसमें महत्वपूर्ण कमी आई है।
मुख्यमंत्री का संकल्प और रणनीति:
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है जिसे जड़ से खत्म करना आवश्यक है। उन्होंने 2026 तक असम को बाल विवाह मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार ने कई मोर्चों पर काम किया है:
- कड़ी कानूनी कार्रवाई: बाल विवाह में शामिल पाए जाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की गई है, जिसमें 3,000 से अधिक गिरफ्तारियां शामिल हैं। पुलिस ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) और पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत मामले दर्ज किए हैं। इस सख्ती ने लोगों में भय पैदा किया है और बाल विवाह के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया है।
- जागरूकता अभियान: सरकार ने व्यापक जागरूकता अभियान चलाए हैं ताकि लोगों को बाल विवाह के दुष्प्रभावों और संबंधित कानूनों के बारे में शिक्षित किया जा सके।
- शिक्षा को प्रोत्साहन: लड़कियों को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कई योजनाएं शुरू की गई हैं। ‘निजुट मोइना’ (Nijut Moina) योजना ऐसी ही एक पहल है, जिसके तहत बाल विवाह को रोकने और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए छात्राओं को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना में कक्षा 11 से स्नातकोत्तर स्तर तक की छात्राओं को मासिक वजीफा दिया जाता है, जिससे उनके परिवारों पर वित्तीय बोझ कम होता है और वे अपनी पढ़ाई जारी रख पाती हैं।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों, ग्राम प्रधानों और सिविल सोसाइटी संगठनों को भी इस अभियान में शामिल किया गया है ताकि जमीनी स्तर पर बदलाव लाया जा सके। 20 जिलों में से 12 में 90% से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि गिरफ्तारी और एफआईआर जैसी कानूनी कार्रवाई बाल विवाह की घटनाओं को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकती है।
पहले की स्थिति और चुनौतियाँ:
असम में बाल विवाह की दर पहले काफी अधिक थी, जो राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, 2019-21 में 20-24 आयु वर्ग की 32% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हुई थी। इसके पीछे कई सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक कारण थे, जिनमें शामिल हैं:
- गरीबी: गरीब परिवारों में अक्सर लड़कियों को बोझ समझा जाता था और कम उम्र में शादी करके उन्हें ‘मुक्त’ करने की प्रवृत्ति थी।
- शिक्षा की कमी: शिक्षा की कमी, विशेष रूप से लड़कियों के लिए, उन्हें सशक्त होने से रोकती थी और उनके पास विवाह के अलावा अन्य विकल्प नहीं होते थे।
- लैंगिक असमानता: पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों को लड़कों की तुलना में कम महत्व दिया जाता था और उनकी शिक्षा या करियर में निवेश को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी।
- सामाजिक असुरक्षा: कई माता-पिता को लगता था कि कम उम्र में शादी करने से उनकी बेटियों की समाज में सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- दहेज प्रथा: कुछ मामलों में, दहेज की मांगों से बचने के लिए भी कम उम्र में शादी कर दी जाती थी, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ दहेज की मांग बढ़ सकती थी।
- पारंपरिक मान्यताएं: कुछ समुदायों में सदियों पुरानी परंपराएं और रीति-रिवाज भी बाल विवाह को बढ़ावा देते थे।
आगे की राह:
असम सरकार की यह सफलता अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एनडीए मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में असम के मॉडल की सराहना की है और अन्य राज्यों से इसे अपनाने का आग्रह किया है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि केवल दंडात्मक उपाय ही नहीं, बल्कि शिक्षा, सशक्तिकरण और जागरूकता पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए ताकि बाल विवाह को जड़ से खत्म किया जा सके और लड़कियों को उनका पूरा अधिकार मिल सके। असम सरकार 2026 तक बाल विवाह मुक्त राज्य बनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और उम्मीद है कि यह मॉडल पूरे देश में बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक नया मील का पत्थर साबित होगा।