by-Ravindra Sikarwar
गुवाहाटी, असम: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे इस काल्पनिक डर को सिरे से खारिज कर दिया है कि “यदि चीन ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोक दे तो भारत का क्या होगा”। सरमा ने तथ्यात्मक डेटा प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट किया है कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को बनाए रखने में भारत की भूमिका कहीं अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी है, न कि चीन की।
पाकिस्तान का दुष्प्रचार और भारतीय खंडन:
हाल ही में, भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को आंशिक रूप से निलंबित करने के बाद पाकिस्तान में एक नई चिंता और घबराहट देखी जा रही है। इसी के चलते पाकिस्तान ने एक नया दुष्प्रचार अभियान शुरू किया है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि यदि भारत सिंधु संधि से पीछे हटता है, तो चीन, जो पाकिस्तान का एक करीबी सहयोगी है, ब्रह्मपुत्र नदी का जल प्रवाह रोककर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
इस पाकिस्तानी ‘थ्योरी’ पर प्रतिक्रिया देते हुए, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दृढ़ता से कहा कि इस तरह के सवालों से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने इसे पाकिस्तान का प्रोपेगैंडा करार दिया और आंकड़ों के साथ इसका खंडन किया।
ब्रह्मपुत्र के प्रवाह में भारत का वर्चस्व:
मुख्यमंत्री सरमा ने अपने बयानों में और सोशल मीडिया पर साझा की गई जानकारी में बताया कि ब्रह्मपुत्र नदी का कुल जल प्रवाह में चीन का योगदान केवल 30-35 प्रतिशत है। यह योगदान भी मुख्य रूप से तिब्बत के पठार में ग्लेशियरों के पिघलने और सीमित वर्षा से आता है।
इसके विपरीत, ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह का शेष 65-70 प्रतिशत हिस्सा भारत के भीतर ही उत्पन्न होता है। यह भारतीय मानसून की भारी बारिश और भारत में इसकी कई सहायक नदियों (जैसे सुबनसिरी, सियांग, लोहित, दिबांग, मानस, तीस्ता आदि) से आता है।
सरमा ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि:
- भारत-चीन सीमा (तूतिंग) पर ब्रह्मपुत्र का प्रवाह 2,000-3,000 घन मीटर प्रति सेकंड होता है।
- लेकिन, असम के मैदानों में गुवाहाटी जैसे स्थानों पर मानसून के समय यही प्रवाह बढ़कर 15,000-20,000 घन मीटर प्रति सेकंड हो जाता है।
यह डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करने के बाद ही अधिक सशक्त और विशाल बनती है। यह एक भारतीय, वर्षा-पोषित नदी प्रणाली है, न कि किसी एक स्रोत पर निर्भर।
चीन के बांधों का प्रभाव और भारत की तैयारी:
हालांकि चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो के नाम से) पर कुछ बड़े बांध बना रहा है, विशेषज्ञ मानते हैं कि इन बांधों का निचले इलाकों में पानी के प्रवाह पर बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि अधिकांश जल प्रवाह भारत में ही उत्पन्न होता है। कुछ विशेषज्ञों ने यह भी तर्क दिया है कि यदि चीन कभी ब्रह्मपुत्र के जल को कम भी कर दे (जो कि अब तक किसी भी मंच पर न कहा गया है, न संकेत दिया गया है), तो यह असम के लिए कुछ हद तक मददगार हो सकता है। इसका कारण यह है कि हर साल असम में आने वाली भीषण बाढ़ लाखों लोगों को विस्थापित करती है और भारी तबाही लाती है, और जल प्रवाह में कमी से बाढ़ का खतरा कम हो सकता है।
भारत सरकार ने इस संबंध में चीन के साथ संचार बनाए रखा है, और 2006 से एक ‘एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म’ काम कर रहा है, जिसके तहत चीन मानसून के दौरान ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल स्तर से जुड़ी जानकारी भारत को देता है।
निष्कर्ष:
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पाकिस्तान को याद दिलाया है कि ब्रह्मपुत्र एक ही स्रोत पर आधारित नदी नहीं है। यह भारत के भूगोल, भारतीय मानसून और भारत की सभ्यतागत शक्ति से पोषित नदी है। उनके बयान ने पाकिस्तान के दुष्प्रचार को न केवल तथ्यों से खारिज किया है, बल्कि ब्रह्मपुत्र नदी के संदर्भ में भारत की मजबूत स्थिति को भी उजागर किया है।