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आमलकी एकादशी होलिका दहन से चार दिन पहले आती है, जो फाल्गुन मास की आखिरी एकादशी है। इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। इसके बाद से फाल्गुन का महीना खत्म होकर चैत्र का महीना लगता है। इन दिनों कहा जाता है कि भगवान का निवास आवंले में होता है, इसलिए इस दिन आंवले के नीचे बैठकर भगवान की कथा करनी चाहिए। इस दिन आंवला दान करने और आंवला की पूजा करना बहुत फल देता है।

इसकी कथा इस प्रकार है-
त्रेतायुग में एक बार राजा मांधाता ने ऋृषि वशिष्ट जी से अनुरोध किया कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे मेरा हर प्रकार से कल्याण हो। उन्होंने कहा, वैसे तो सभी व्रत उत्तम है, लेकिन सबसे उत्तम है, आमलकी एकादशी व्रत। इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने से एक हजार गायों के दान के बराबर फल मिलता है। मैं तुम्हे इस व्रत कीकथा सुनाता हूँ-
वैदिक नाम का एक नगर था जिसमें एक ब्राह्राण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र चारों परिवार अच्छे से रहते थे। वहां पर सदैव वैद ध्वनि गूंजत रहती थी। उसी नगर में चैत्ररथ नाम का चंद्रवंशी राजा का राज था। नगर के सभी लोग भगवान विष्णु के परम भक्त थे और भगवान विष्णु के लिए एकादशी व्रत किया करते थे। हमेशा की तरह इस साल भी आमलकी एकादशी पर सभी ने आनंदपूर्वक व्रत किया। राजा ने प्रजा के साथ मंदिर में आंवले की पूजा पुरे विधि विधान से कर रात्रि में जागरण भी किया। उसी दिन कही से भटकता हुआ एक दुराचारी और पापी बहेलिया वह आ पहुंचा। वह जीव हत्या करके अपना घर चलाता था, एक दिन उसे कोई शिकार नहीं मिला और उसे दिन भर भूखा ही रहना पड़ा। भूख के कारण वह एक मंदिर में चला गया और एकादश व्रत का महात्मय सुनने लगा। रात में उसने कुछ नहीं खाया और घर जाकर ही भोजन किया। इस प्रकार अनजाने में उससे एकादशी का व्रत हो गया। कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गई। एकादशी व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में उसने राजा विधुरथ के यहां जन्म लिया। उसका नाम वसुरथ रखा गया। वह सेना के साथ 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा। वह सूर्य की तरह तेजवान था और मुख पर चंद्रमा सी कांति चमकती थी, वह विष्णु का परम भक्त था और दान पुण्य और यज्ञ करना उसका काम था। एक दिन राजा वसुरथ शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया। तभी राजा को आवाज आई कि कुछ मलेच्छ उसे मारने आ रहे हैं। उनका कहना था कि राजा ने उन्हें राज्य से बाहर निकवाया है और अब वो राजा को जिन्दा नहीं छोड़ेगें। ऐसा कहते हुए वो अस्त्र लेकर राजा को मारने दौड़े। लेकिन राजा पर उनके अस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं हुआ। राजा के शरीर से एक देवी उत्पन्न हुईं और उन्होंने सभी मलेच्छ को मार दिया। तभी भविष्यवाणी हुई की तुम्हारी रक्षा स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस प्रकार एक दुराचारी और पापी बहेलिया के एक दिन के आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से सब अच्छा हो गया। इसीलिए कहा जाता है की जो आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, उनके सभी कार्य पूर्ण होते हैं और ऐसा व्यक्ति अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के ये 6 उपाय
धार्मिक मान्यता है इस दिन कुछ उपाय कर लेने से श्री हरि का आशीर्वाद मिलने के साथ सुख-समृद्धि में भी वृद्धि होती है।
आमलकी एकादशी भगवान श्री हरि विष्णु जी को समर्पित है और इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की आराधना करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है। आमलकी एकादशी के दिन कुछ उपायों को करने से आर्थिक संकट दूर हो जाते है साथ ही साथ जीवन में सुख-समृद्धि की भी बढ़त होती है।

1- धार्मिक मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
2- आमलकी एकादशी पर श्रीमद् भागवत कथा का पाठ करना पुण्यदायक माना जाता है।
3- अगर आपके वैवाहिक जीवन में मनमुटाव की स्थिति बनी हुई है और हर रोज क्लेश बना रहता है तो आमलकी एकादशी के दिन लक्ष्मी माता और तुलसी माता को श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
4- अगर आप आर्थिक दिक्कतों से परेशान हैं तो आमलकी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में विष्णु भगवान की पूरी श्रद्धा के साथ विधिवत उपासना करें और 1 पान के पत्ते में ॐ विष्णवे नमः लिखकर भगवान के चरणों में अर्पित कर दें। अगले दिन इस पत्ते को पीले रंग के कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रख दें।
5- आमलकी एकादशी पर दान करने का विशेष महत्व माना जाता है। इसलिए अपने जीवन की सभी मुश्किलों को दूर करने के लिए आमलकी एकादशी के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को भोजन कराएं।
6- आमलकी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु जी का पंचामृत से अभिषेक करें। ऐसा करने से आपके जीवन में आ रही बाधाएं दूर होंगी और आपके जीवन में खुशाली आएगी।

आमलकी एकादशी पर इन मुहूर्त में करें पूजा, जानें विधि, मंत्र व भोग

आज आमलकी एकादशी व्रत रखा जाएगा, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवन विष्णु जी और मां लक्ष्मी के साथ-साथ शिव पार्वती व आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। पंचांग के अनुसार, 09 मार्च 2025 की सुबह 07:45 बजे से एकादशी तिथि की शुरुआत हो चुकी है, जो 10 मार्च 2025 को सुबह 07:44 मिनट तक रहेगी। मान्यताओं के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत रख विधिवत पूजन करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जानें, आमलकी एकादशी पर शुभ मुहूर्त, पूजाविधि, मंत्र, भोग व व्रत पारण समय-
सुबह से शाम तक इन मुहूर्त में करें आमलकी एकादशी पूजा
• ब्रह्म मुहूर्त 04:59 से 05:48
• प्रातः 05:23 से 06:36
• अभिजित मुहूर्त 12:08 से 12:55
• विजय मुहूर्त 02:30 से 03:17
• गोधूलि मुहूर्त 06:24 से 06:49
• सायाह्न सन्ध्या 06:27 से 07:39
• अमृत काल 06:12 से 07:52
• निशिता मुहूर्त 12:07, मार्च 11 से 12:55, मार्च 11
• सर्वार्थ सिद्धि योग 06:36 से 12:51, मार्च 11

आमलकी एकादशी व्रत पारण का ये है शुभ मुहूर्त 2025:
आमलकी एकादशी व्रत का पारण 11 मार्च 2025, मंगलवार को किया जाएगा। एकादशी व्रत तोड़ने का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 35 मिनट से सुबह 08 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय सुबह 08 बजकर 13 मिनट है।
द्वादशी तिथि के भीतर एकादशी व्रत पारण न करने से क्या होता है: एकादशी व्रत को खोलने या तोड़ने को व्रत पारण कहा जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए। इसके साथ ही एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाती है तो इस स्थिति में व्रत पारण सूर्योदय के बाद होता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर नहीं करना ऐसा पाप के समान माना गया है।

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