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by-Ravindra Sikarwar

दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों के तहत पुराने वाहनों पर ईंधन के इस्तेमाल पर लगाए गए प्रतिबंध ने राजधानी में असमंजस और भारी आलोचना को जन्म दिया है। मुख्य समस्या यह है कि इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए आवश्यक सहायक बुनियादी ढांचा (supporting infrastructure) मौजूद नहीं है, जिससे हजारों वाहन मालिक और चालक प्रभावित हो रहे हैं।

प्रतिबंध क्या है और क्यों लगाया गया?
दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति के तहत पुराने वाहनों पर ईंधन के उपयोग को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। इसके तहत:

  • 10 साल से पुराने डीजल वाहन
  • 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन

दिल्ली की सड़कों पर नहीं चल सकते। यह कदम सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के निर्देशों के अनुरूप है, जिनका उद्देश्य वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना है, जो दिल्ली के प्रदूषण में एक बड़ा योगदानकर्ता है।

आलोचना और भ्रम का कारण:
हालांकि प्रतिबंध का उद्देश्य नेक है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई कमियां हैं जिन्होंने भारी आलोचना को जन्म दिया है:

  1. पर्याप्त ‘स्क्रैपिंग इंफ्रास्ट्रक्चर’ का अभाव:
    • सरकार ने पुराने वाहनों को स्क्रैप करने (कबाड़ में बदलने) के लिए पर्याप्त और सुलभ केंद्र उपलब्ध नहीं कराए हैं। वाहन मालिकों को अपने पुराने वाहनों को निपटाने के लिए लंबी कतारों, जटिल प्रक्रियाओं और सीमित विकल्पों का सामना करना पड़ रहा है।
    • कई वाहन मालिक, खासकर वाणिज्यिक वाहन चालक, अपनी आजीविका के लिए इन वाहनों पर निर्भर हैं। उनके लिए तुरंत नया वाहन खरीदना या अपने पुराने वाहन को सही तरीके से निपटाना मुश्किल हो रहा है।
  2. वैकल्पिक ईंधन के बुनियादी ढांचे की कमी:
    • हालांकि सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) या CNG जैसे स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा दे रही है, लेकिन दिल्ली में चार्जिंग स्टेशनों और CNG पंपों का नेटवर्क अभी भी उतना व्यापक नहीं है कि वह सभी पुराने वाहनों को समायोजित कर सके।
    • बड़ी संख्या में वाहन मालिकों के लिए तुरंत इलेक्ट्रिक या CNG वाहनों पर स्विच करना वित्तीय रूप से संभव नहीं है।
  3. जागरूकता और स्पष्टता का अभाव:
    • प्रतिबंध के बारे में आम जनता और विशेष रूप से वाहन मालिकों के बीच स्पष्ट जानकारी की कमी है। कई लोगों को नियमों, जुर्माना या वैकल्पिक विकल्पों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
    • प्रवर्तन एजेंसियां भी अक्सर भ्रमित रहती हैं कि प्रतिबंध को कैसे लागू किया जाए, जिससे मनमानी और उत्पीड़न की शिकायतें सामने आ रही हैं।
  4. रोजगार पर प्रभाव:
    • यह प्रतिबंध उन हजारों लोगों की आजीविका पर सीधा असर डाल रहा है जो पुरानी टैक्सियों, ऑटो रिक्शा और अन्य वाणिज्यिक वाहनों के माध्यम से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। उनके पास रातोंरात नए वाहन खरीदने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है।

सरकार के सामने चुनौतियां:
दिल्ली सरकार और संबंधित प्राधिकरणों के सामने अब दोहरी चुनौती है: प्रदूषण कम करना और साथ ही नागरिकों की आजीविका और सुविधा सुनिश्चित करना। आलोचकों का सुझाव है कि प्रतिबंध लागू करने से पहले सरकार को:

  • अधिक स्क्रैपिंग सुविधाएं स्थापित करनी चाहिए थी।
  • स्वच्छ ईंधन विकल्पों के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन बढ़ाना चाहिए था।
  • पर्याप्त चार्जिंग और ईंधन भरने वाले बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए था।
  • प्रभावित वाहन मालिकों के लिए आसान वित्तपोषण विकल्प प्रदान करने चाहिए थे।

यह देखना बाकी है कि दिल्ली सरकार इन आलोचनाओं पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और क्या वह इस प्रतिबंध को अधिक सुचारू और न्यायसंगत तरीके से लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाती है। प्रदूषण से लड़ना महत्वपूर्ण है, लेकिन ऐसा करते समय नागरिकों के हितों और व्यवहारिक चुनौतियों का ध्यान रखना भी उतना ही आवश्यक है।

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