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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवाई एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने पिता के संघर्ष और वकील बनने के उनके अधूरे सपने को याद करते हुए भावुक हो गए। उनकी आँखों में आंसू आ गए, और कुछ क्षणों के लिए उनकी आवाज लड़खड़ा गई, जिससे वहाँ मौजूद सभी लोग भावुक हो गए। यह क्षण दिखाता है कि देश के सर्वोच्च कानूनी पद पर बैठे व्यक्ति के जीवन में भी उनके परिवार के सपनों और संघर्षों का कितना गहरा प्रभाव होता है।

क्या हुआ था?
यह घटना शनिवार (28 जून, 2025) को एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान हुई। यह किताब उनके पिता, रामकृष्ण गवाई, पर आधारित थी, जो एक अनुभवी राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और दलित नेता थे। न्यायमूर्ति गवाई ने मंच पर अपने पिता के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बात की, खासकर उनके कानूनी करियर के प्रति उनके जुनून के बारे में।

उन्होंने कहा, “मेरे पिता का सपना था कि वह एक वकील बनें और कोर्ट में प्रैक्टिस करें। लेकिन गरीबी और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण वह अपना यह सपना पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने मुझे हमेशा प्रेरित किया कि मैं उनके इस अधूरे सपने को पूरा करूँ।”

जैसे ही उन्होंने यह बात कही, उनकी आँखों में आंसू आ गए और उनका गला भर आया। उन्होंने कुछ देर के लिए बोलना बंद कर दिया, अपनी आँखें पोंछीं, और फिर अपनी बात जारी रखी। उन्होंने आगे कहा, “आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह मेरे पिता के त्याग और उनके विश्वास के कारण हूँ। उनका सपना मुझमें जीवित है।”

एक प्रेरणादायक कहानी:
न्यायमूर्ति गवाई का यह भावुक क्षण दिखाता है कि कैसे उनके पिता का संघर्ष उनके लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना। रामकृष्ण गवाई एक महान सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। वह कई वर्षों तक महाराष्ट्र विधान सभा और संसद के सदस्य रहे।

न्यायमूर्ति गवाई ने बताया कि उनके पिता हमेशा चाहते थे कि उनका बेटा कानूनी पेशे में एक मुकाम हासिल करे, जिसे वह खुद पूरा नहीं कर पाए थे। इसी प्रेरणा के साथ न्यायमूर्ति गवाई ने कानून की पढ़ाई की और 1985 में महाराष्ट्र में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और हाल ही में उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला है।

यह घटना न केवल न्यायमूर्ति गवाई के व्यक्तिगत जीवन को उजागर करती है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि कैसे माता-पिता के सपने और संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा बन सकते हैं। यह क्षण भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठे एक व्यक्ति की मानवीय संवेदनाओं को दर्शाता है।

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