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by-Ravindra Sikarwar

वाशिंगटन: अमेरिका ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख, जनरल आसिम मुनीर को वाशिंगटन यात्रा के लिए आमंत्रित किया है, इस कदम से दोनों देशों के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग को और मजबूत करने का संकेत मिलता है। यह निमंत्रण ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी अधिकारी पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक “असाधारण भागीदार” के रूप में वर्णित कर रहे हैं।

अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के प्रमुख, जनरल माइकल कुरिल्ला ने विशेष रूप से पाकिस्तान सेना की सराहना की है। उन्होंने मोहम्मद शरीफुल्ला की गिरफ्तारी में पाकिस्तानी सेना की महत्वपूर्ण भूमिका की प्रशंसा की। शरीफुल्ला ISIS-K (इस्लामिक स्टेट-खुरासान) का एक वरिष्ठ ऑपरेशनल कमांडर था, जिस पर 26 अगस्त, 2021 को काबुल में हामिद करजई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एबी गेट पर हुए आत्मघाती बम हमले की योजना बनाने में अहम भूमिका निभाने का आरोप है। इस भीषण हमले में 13 अमेरिकी सैनिक और 169 अफगान नागरिक मारे गए थे।

जनरल कुरिल्ला के अनुसार, शरीफुल्ला की गिरफ्तारी आतंकवाद विरोधी प्रयासों में पाकिस्तान की प्रतिबद्धता और क्षमता का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है। अमेरिका लंबे समय से क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद से लड़ने में पाकिस्तान के सहयोग को महत्व देता रहा है, और यह निमंत्रण इसी निरंतर साझेदारी को दर्शाता है।

हालांकि, इस निमंत्रण का भू-राजनीतिक निहितार्थ भी है, खासकर भारत के संदर्भ में। भारत ने अतीत में अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को लेकर चिंता व्यक्त की है, विशेषकर जब वाशिंगटन इस्लामाबाद को क्षेत्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक मानता है। कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि अमेरिका का यह कदम भारत और पाकिस्तान के बीच ‘हाइफनेशन’ (दोनों देशों को एक साथ देखना) की पुरानी अमेरिकी नीति की ओर लौटने का संकेत हो सकता है, जिससे नई दिल्ली में कुछ चिंताएं पैदा हो सकती हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री को “हठधर्मिता” छोड़ देनी चाहिए और संसद का एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए ताकि देश की विदेश नीति और क्षेत्रीय समीकरणों पर चर्चा की जा सके। यह दर्शाता है कि भारत इस घटनाक्रम को कितनी गंभीरता से ले रहा है।

कुल मिलाकर, जनरल आसिम मुनीर का अमेरिकी दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर आतंकवाद विरोधी सहयोग के मोर्चे पर। हालांकि, इसके क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर क्या व्यापक प्रभाव होंगे, यह देखना अभी बाकी है।

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