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मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था, और उनका जन्म पाकिस्तान के एटाबाद में 1937 में हुआ था। विभाजन के बाद, 1947 में वे अपने परिवार के साथ दिल्ली के एक शरणार्थी शिविर में आ बसे। इस दौरान, उनका देशप्रेम इतना गहरा था कि उन्होंने न केवल अपना नाम बदला, बल्कि भारतीय सिनेमा में ‘भारत कुमार’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

विभाजन के दर्द और एटाबाद की यादें
जब विभाजन हुआ, तो हरिकृष्ण गोस्वामी के लिए यह समझ पाना कठिन था कि क्यों उनका प्यारा पाकिस्तान अचानक उनका अपना मुल्क नहीं रहा। उन्हें दिल्ली के शरणार्थी शिविर में रहकर एक नया जीवन शुरू करना पड़ा। एटाबाद, जो कभी उनका घर था, हमेशा उनके दिल में बसता रहा। हालांकि, समय के साथ उन्होंने नई परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया और जीवन में आगे बढ़े।

फिल्मों की दुनिया में प्रवेश
मनोज कुमार का फिल्मी करियर पैसों या प्रसिद्धि के लिए नहीं, बल्कि एक उद्देश्य के साथ शुरू हुआ था। वे फिल्मों में इसलिए आए थे क्योंकि उनका सपना था कि वे एक फरिश्ता बनें। उनका आदर्श अभिनेता दिलीप कुमार था, और वे उनकी फिल्मों के माध्यम से इंसानियत और प्रेरणा का संदेश फैलाना चाहते थे।

फिल्मों में दिलीप कुमार की प्रेरणा
एक बार, हरिकृष्ण गोस्वामी ने अपने मामा के साथ फिल्में देखी थीं, जिनमें दिलीप कुमार ने अभिनय किया था। एक फिल्म में दिलीप कुमार की मृत्यु होती है, और फिर दूसरी फिल्म में भी ऐसा ही होता है। यह देखकर उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि क्या इंसान एक से अधिक बार मर सकता है? मां ने जवाब दिया, “अगर कोई दो से तीन बार मरे, तो वह फरिश्ता होता है।” तब से हरिकृष्ण ने फरिश्ता बनने का सपना देखा। इसके बाद, उन्होंने फिल्म ‘शहीद’ देखी, जिसमें दिलीप कुमार का नाम मनोज कुमार था। तभी उन्होंने तय किया कि वे फिल्मों में आएंगे तो अपना नाम मनोज कुमार रखेंगे।

भगत सिंह की फिल्म की प्रेरणा
एक दिन अपने मोहल्ले में नाटक की प्रस्तुति के दौरान, हरिकृष्ण को भगत सिंह का रोल मिला। हालांकि, मंच पर जाते वक्त वह शर्म से डर गए और अभिनय नहीं कर पाए। उनके पिता की बात “तू नकली भगत सिंह भी नहीं बन पाया” ने उन्हें अंदर से हिला दिया। इसके बाद, उन्होंने भगत सिंह के बारे में जानने की इच्छा बढ़ाई और किताबों और पत्रिकाओं से इस वीर स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानकारी हासिल की। कुछ सालों बाद, उन्होंने भगत सिंह पर एक फिल्म लिखी और मुंबई में अपने दोस्त कश्यप को यह स्क्रिप्ट दिखाई। बाद में, यह फिल्म बनाकर उन्होंने इसमें मुख्य भूमिका निभाई, जो कि उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाई।

भारत कुमार बनने की यात्रा
मनोज कुमार का कहना था कि उनका असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था, लेकिन उन्हें भारत कुमार बनाने में देशवासियों का सबसे बड़ा हाथ था। उनके अभिनय और देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया। उनका निधन देशभर में शोक की लहर छोड़ गया, क्योंकि उनका देशप्रेम ही वह कारण था जिसने उन्हें ‘भारत कुमार’ बना दिया।

निष्कर्ष
मनोज कुमार की फिल्में आज भी देशप्रेम और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा देती हैं। उनकी कड़ी मेहनत, उनके संघर्ष और देश के प्रति उनके प्यार ने उन्हें भारतीय सिनेमा में अमर कर दिया।

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