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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: आज, 25 जून 2025 को भारत के इतिहास के एक काले अध्याय के 50 साल पूरे हो गए हैं। यह वह दिन था जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जिसने भारतीय लोकतंत्र को लगभग 21 महीनों तक बंधक बनाए रखा। इस ऐतिहासिक और विवादास्पद घटना की 50वीं वर्षगांठ पर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मना रही है, और देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोल रही है।

भाजपा के शीर्ष नेताओं ने इस अवसर का उपयोग कांग्रेस पर “लोकतंत्र की हत्या” और “तानाशाही” के आरोपों को दोहराने के लिए किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों से कांग्रेस की आलोचना की है।

भाजपा का आरोप: कांग्रेस ने संविधान की हत्या की
भाजपा का मुख्य आरोप यह है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार ने मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया था, प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया था, और राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया था। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह भारतीय संविधान की आत्मा पर सीधा हमला था। उनका तर्क है कि आपातकाल ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस पार्टी सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है और वह लोकतंत्र के मूल्यों का सम्मान नहीं करती।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बयान में कहा, “आज से 50 साल पहले, कांग्रेस ने अपनी सत्ता की भूख के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया था। उन्होंने लाखों निर्दोष लोगों को जेल में डाल दिया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई और न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश की। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय था, और कांग्रेस ने संविधान की हत्या की थी।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने एक ट्वीट में आपातकाल को “लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला” बताया और कहा कि “यह हमें याद दिलाता है कि कैसे एक परिवार ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए देश को बंदी बना लिया था।”

देश भर में भाजपा के कार्यक्रम
‘संविधान हत्या दिवस’ के उपलक्ष्य में, भाजपा देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। इनमें संगोष्ठियां, वेबिनार, प्रदर्शनी और जनसभाएं शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य युवा पीढ़ी को आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों के बारे में जागरूक करना और कांग्रेस के “तानाशाही” इतिहास को उजागर करना है।

कई राज्यों में, भाजपा कार्यकर्ताओं ने ‘संविधान बचाओ’ रैली निकाली और आपातकाल के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी। सोशल मीडिया पर भी भाजपा ने एक व्यापक अभियान शुरू किया है, जिसमें आपातकाल से जुड़ी तस्वीरें, वीडियो और कहानियों को साझा किया जा रहा है ताकि जनमानस में इस घटना की स्मृति को ताजा किया जा सके।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस पार्टी ने हमेशा आपातकाल को एक “दुर्भाग्यपूर्ण” घटना बताया है, लेकिन साथ ही वे इसके पीछे के “हालात” को भी उजागर करते रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि देश को उस समय “अस्थिरता” और “विदेशी साजिशों” का सामना करना पड़ रहा था, जिसके कारण ऐसे कड़े कदम उठाने पड़े। हालांकि, भाजपा इन तर्कों को खारिज करती है और इसे केवल अपनी गलतियों को छिपाने का प्रयास बताती है।

इस साल भी, कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को “राजनीति से प्रेरित” बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा अतीत के मुद्दों को उठाकर वर्तमान की असफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।

ऐतिहासिक संदर्भ: आपातकाल क्या था?
25 जून 1975 को, तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (एमआईएसए) के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द करने के फैसले के बाद हुई थी। आपातकाल के दौरान, नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, प्रेस पर सख्त सेंसरशिप लगाई गई, और हजारों राजनीतिक विरोधियों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया। इस अवधि में जबरन नसबंदी जैसे कई मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी लगे। 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हुआ और उसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।

आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह घटना आज भी भारतीय राजनीति में बहस का विषय बनी हुई है, और हर साल इसकी वर्षगांठ पर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। भाजपा के लिए, यह कांग्रेस पर हमला करने और उसे “अलोकतांत्रिक” साबित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जबकि कांग्रेस इसे एक “विरासत” के रूप में देखती है जिसका बचाव करना अक्सर मुश्किल होता है।

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