
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक और बड़ी कानूनी जीत हासिल हुई है। कुख्यात माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत की जांच की मांग को लेकर उसके बेटे उमर अंसारी द्वारा दायर याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।
उमर अंसारी ने अपनी याचिका में मुख्तार अंसारी की जेल में हुई मौत की प्राथमिकी दर्ज कराने और एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की मांग की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को “हस्तक्षेप योग्य न मानते हुए” उमर अंसारी की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया।
यह फैसला योगी सरकार की माफिया विरोधी मुहिम को न्यायपालिका से मिली एक और बड़ी पुष्टि के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश सरकार अपराधियों पर लगातार शिकंजा कस रही है। कोर्ट के इस फैसले को संगठित अपराध के खिलाफ सरकार की नीति की बड़ी वैधता के रूप में माना जा रहा है।
मुख्तार अंसारी और उसका आपराधिक इतिहास:
मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात अपराधियों में गिना जाता था। गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद का रहने वाला मुख्तार हत्या, अपहरण, रंगदारी, जबरन वसूली, गैंगस्टर एक्ट और एनएसए समेत 65 से अधिक मुकदमों में आरोपी था। 1980 के दशक से सक्रिय मुख्तार अंसारी ने संगठित अपराध की दुनिया में कदम रखा और बाद में राजनीति को भी अपना हथियार बनाया।
उसके खिलाफ दर्ज प्रमुख मामलों में कृष्णानंद राय हत्याकांड, जेलर मर्डर केस और रुगटा हत्याकांड जैसे गंभीर अपराध शामिल थे। उसे उत्तर प्रदेश की विभिन्न अदालतों से अब तक आठ मामलों में सजा सुनाई जा चुकी थी। इनमें से दो मामलों में आजीवन कारावास और शेष में 5 से 10 वर्ष तक की सजाएं दी गई थीं।
जेल में इलाज के दौरान हुई थी मौत:
28 मार्च 2024 को मुख्तार अंसारी की मौत बांदा जेल में इलाज के दौरान हुई थी। उसके बेटे उमर अंसारी ने इस मौत को संदिग्ध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, लेकिन अब कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह मामला जांच या हस्तक्षेप के योग्य नहीं है।
योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ को समर्थन:
यह फैसला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि योगी सरकार द्वारा अपराध और अपराधियों के खिलाफ अपनाई गई ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को न केवल जनता का, बल्कि न्यायपालिका का भी समर्थन मिल रहा है। प्रदेश सरकार की सशक्त पैरवी और अभियोजन के चलते अब तक कई माफिया सरगनाओं को सजा दिलाई जा चुकी है।
यह निर्णय इस बात का भी प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश अब माफियाओं की सुरक्षित पनाहगाह नहीं, बल्कि कानून का सख्ती से पालन करने वाला राज्य बन चुका है। कोर्ट की यह टिप्पणी कि यह हस्तक्षेप योग्य मामला नहीं है, सरकार के कामकाज पर न्यायिक भरोसे की मिसाल बन गई है।