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चिकित्सकों के बारे में कहा जाता है कि धरती पर ईश्वर के बाद अगर कोई व्यक्ति जीवन देता है तो वह होता है डॉक्टर। इसलिए डॉक्टर को धरती का भगवान या फिर भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इंसान की जिंदगी और डॉक्टरी पेशे में कई बार ऐसे पल आते हैं कि इंसान जीवन की उम्मीद छोड़ देता है, उस वक्त डॉक्टर ही मौत को मात देकर इंसान को बचा लेता है। डॉक्टर के यही प्रयास लोगों की जिंदगी में जीवन का नया सवेरा लाकर खुशियों के रंग भरते हैं। भगवान के इसी रूप की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं डॉ. आशीष प्रताप सिंह चौहान। डॉ. चौहान जो न कि अपने पेशे के साथ न्याय कर रहे हैं बल्कि मानवता से सराबोर होकर लोगों की जिंदगी को रोशन कर रहे हैं। ऐसे डॉक्टर को आप भी कीजिए सलाम।
आइए, जानते हैं डॉ. आशीष प्रताप सिंह चौहान की कहानी, उन्हीं की जुबानी।

  डॉ.केशव पाण्डेय

जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया कि डॉ. चौहान पेशे से चिकित्सक होने के बावजूद मानव सेवा भाव को नैतिक कर्त्तव्य समझते हैं। समाज में ऐसे लोग जो समय-समय पर जांच नहीं करा सकते हैं, उनकी जरूरतों का ख्याल रखते हैं।
डॉ.चौहान के मुताबिक दिल का दौरा एक जानलेवा आपात स्थिति है। यह दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते कुछ ही मिनटों की भी देरी जानलेवा साबित हो जाती है। दिल के दौरा के प्रारंभिक संकेत और लक्षणों को हर व्यक्ति को समझना चाहिए।
यदि आपको साँस फूलना व जल्दी थकना, सीने में दर्द, छाती में जलन और घबराहट, अनियंत्रित बीपी, धड़कन असमान्य हो जाना, दिल में छेद की समस्या, हाथ-पैर की नसों में ब्लॉकेज है तो फिर आपको सावधानी बरतने की जरूरत है। इनमें से कोई लक्षण दिखने या महसूस होने पर आप बिना किसी देर के डॉक्टर से मिलकर परामर्श ले सकते हैं। डॉक्टर की सलाह पर उचित इलाज की जरूरत हो तो अवश्य कराएं।
दादा-दादी की चाहत पर बने डॉक्टर
डॉ. चौहान ने बताया कि वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे। लेकिन उनके दादा-दादी की चाहत थी मैं डॉक्टर बनूं। उनकी इसी चाहत को पूरा करने के लिए डॉक्टर बना। इसके पीछे की भी कहानी बड़ी ही रोचक और मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण है।
क्योंकि मेरे दादा-दादी गांव से ग्वालियर में इलाज कराने आते थे, तो उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। तब उन्होंने एक बार अपने पास बिठाकर लाड़-प्यार करते हुए कहा कि बेटा तुम्हे डॉक्टर बनना है। उस वक्त मेरी उम्र 17 साल थी। दादा-दादी की बात का मन-मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव हुआ कि उसी वक्त ठान लिया कि कलेक्टर नहीं अब तो डॉक्टर ही बनना है। मेरा छोटा भाई अभिषेक भी मेधावी था। आखिरकार वो आईएएस बना। मैं और मेरे भाई के समक्ष चुनौतियां अनेक थीं। लेकिन वे हमारे मजबूत इरादों के सामने टिक नहीं सकीं। दोनों भाईयों ने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाया। उन्होंने शहर की गजराजा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। और फिर दिल्ली सफदरजंग चिकित्सा महाविद्यालय से पीजी। इसके बाद जिंदगी कामयाबी की राह पर रफ्तार पकड़ने लगी। गांव से शहर… शहर से देश की राजधानी और फिर विदेश की सैर। खासतौर पर जर्मनी की यात्रा मेरे कॅरियर में वरदान साबित हुई। म्यूनिख शहर में चिकित्सा के क्षेत्र में होने वाले नए आविष्कारों से परिचित हुआ और बहुत कुछ सीखा और जाना।
जर्मनी से लौटने के बाद देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में नौकरी के प्रस्ताव मिले। लेकिन गर्व और गौरव की बात है कि मैंने अपने दादा-दादी की तमन्ना का ख्याल रखते हुए अपनी कर्मभूमि के लिए ग्वालियर को ही चुना। इसे दादा-दादी का प्रभाव कहिए या फिर जड़ों से जुड़े संस्कार।
इन्हीं संस्कारों के परिणामस्वरूप शहर में ’द हार्ट केयर सेंटर’ के नाम से क्लीनिक खोला। क्लीनिक महज एक आय का स्त्रोत नहीं यह आमजन की सेवा का केंद्र भी है। क्योंकि मेरे क्लीनिक से कभी कोई जरूरतमंद या निर्धन धन के अभाव में बिना चिकित्सीय परामर्श या इलाज के वापस नहीं गया है। क्योंकि मेरा उद्देश्य भी सेवा भाव ही है। यही कारण है कि इसी महीने अपने पांचवे वर्ष को पूर्ण कर छठवे वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
नर सेवा नारायण सेवा में विश्वास
डॉ. चौहान का मानना है कि करोड़ों की जनसंख्या वाले हमारे विशाल देश में आज भी एक बड़ा तबका है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर होने की वजह से अच्छी स्वास्थ सेवाओं का लाभ नहीं ले पाता है। ऐसे लोगों को लाभ पहुंचानें के लिए हमने एक संस्था का गठन किया है। हमारा उद्देश्य है कि संस्था के माध्यम से बीपीएल वर्ग के लोगों को नियमित रूप से कम से कम कीमत पर स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जाए। ताकि हर जरूरतमंद को स्वास्थ्य सेवाओं को लाभ मिल सके और स्वस्थ समाज की कल्पना साकार हो जाए।
राजरानी फाउंडेशन बना मददगार
डॉ. चौहान का कहना है कि जब हम एक अच्छी नीयत के साथ कोई काम करते हैं तो उसके सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। लोगों की बेहतरी और अच्छे स्वास्थ्य के लिए राजरानी सोशल फाउंडेशन का गठन किया। जो हमारी कल्पना को उड़ान भर रहा है। क्योंकि फाउंडेशन के माध्यम से हम ग्वालियर-चंबल अंचल के हजारों लोगों की सेवा कर रहे हैं। अचंल के मुरैना, डबरा, शिवपुरी, अम्बाह, पोरसा, लहार, मंगरोनी, नरवर, भितरवार, टीकमगढ़ एवं छत्तरपुर शहरों में करीब दो सैकड़ा से अधिक निःशुल्क शिविर लगाकर लोगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचा चुके हैं। यह यात्रा अनवरत रूप से जारी रहेगी।

By admin

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