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पारस पत्थर को लेकर बचपन से कहानियों में हमने सुना है कि उसके छुने से लोहा सोना बन जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पारस पत्थर कहां और किसके पास है और इसका सच क्या है.

क्या वाकई में था लोहे को सोने में बदलने वाला पत्थर? जानें क्या है पारस पत्थर की कहानी

आपको पता है कि पारस पत्थर से टकराने के बाद लोहा भी सोना बन जाता है. पारस पत्थर से जुड़ी इस तरह की कहानियां अधिकांश लोगों ने बचपन में सुना होगा. लेकिन शायद ही कोई जानता है कि आखिर पारस पत्थर कहां पर है और किसके पास है, यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है. आज हम आपको बताएंगे कि पारस पत्थर की कहानी में कितना सच और इसका धार्मिक महत्व क्या है.

पारस पत्थर से जुड़ी कहानी

धार्मिक कथाओं के मुताबिक अपनी गरीबी से तंग आकर एक ब्राह्मण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगा था. जिसके बाद शंकरजी ने उसे सपने में दर्शन देकर बताया कि वृंदावन में एक सनातन गोस्वामी हैं, उनके पास जाकर पारस पत्थर मांगो उससे तुम्हारी निर्धनता दूर होगी. जब ब्राह्मण उस गोस्वामी से मिला तो उन्हें देखकर हैरान हो गया. क्योंकि उनके पास सिर्फ एक जीर्ण धोती और दुपट्टा था. फिर भी उसने गोस्वामी जी को अपनी निर्धनता के बारे में बताते हुए पारस पत्थर मांगा था. 

लोहा कैसे बना सोना

गोस्वामी जी ने बताया कि जब एक दिन यमुना स्नास करके वे लोट रहे थे तभी किसी पत्थर से उनका पैर टकराया था, पत्थर देखकर उन्हें अद्भुत लगा था और उन्होंने उसे वहीं जमीन की मिट्टी के नीचे गाढ़ दिया था. उन्होंने उस ब्राह्मण से वहां से पत्थर निकालने को कहा. उस ब्राह्मण ने जब उस पत्थर को लोहे के टुकड़े स्पर्श कराया, लोहा सोने में बदल गया था. जगह का पता चला तो वह वहां गया और पारस पत्थर निकाल लिया. जब उसने लोहे को स्पर्श कराया वो स्वर्ण में बदल गया. ब्राह्मण के मन में आया कि जरूर गोस्वामी जी के पास इससे मूल्यवान वस्तु है, तभी उन्होंने मुझे ये पत्थर दिया. उसने उस पत्थर को वहीं मिट्टी में गाढ़ा और स्वर्ण को पानी में फेंक दिया.जिसके बाद गोस्वामी जी के पास दीक्षा ली और उसके साफ मन ने उसके सभी कष्ट हर लिए उसने भगवद्ग गीता का असीम सुख मिला. 

रायसेन के किले से जुड़ा पत्थर का राज

पारस पत्थर को लेकर यह भी कहा जाता है कि भोपाल से 50 किलोमीटर दूर रायसेन के किले में पारस पत्थर आज भी मौजूद है. ये भी कहा जाता है कि इस किले में पारस पत्थर को लेकर कई बार युद्ध हुए थे. जब राजा को लगा कि वह युद्ध हार जाएंगे तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में मौजूद तालाब में फेंक दिया था. जिसके बाद राजा ने किसी को नहीं बताया कि पत्थर कहां छिपा है. लेकिन माना जाता है कि पत्थर आज भी वहीं किले में मौजूद है. लेकिन इसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है

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