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उत्तर प्रदेश विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए लगभग पांच दशकों के लंबे अंतराल के बाद विधायकों की 30 सलाहकार समितियों का गठन किया है। विधानसभा अध्यक्ष का मानना है कि इन समितियों का गठन विधायिका को नई ऊर्जा और मजबूती प्रदान करेगा। इन समितियों का मुख्य उद्देश्य संबंधित विभागों के मंत्रियों को नीति निर्धारण और योजनाओं के क्रियान्वयन में जमीनी स्तर की सलाह और प्रतिक्रिया प्रदान करना है, जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं को जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप तेजी से पहुंचाया जा सके और विभिन्न विभागों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित हो सके।

विधानसभा अध्यक्ष का दूरदर्शी कदम:
विधानसभा अध्यक्ष का मानना है कि इन सलाहकार समितियों के माध्यम से विधायकों को न केवल अपनी और अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को मंत्रियों तक प्रभावी ढंग से पहुंचाने का अवसर मिलेगा, बल्कि उनके समाधान के लिए ठोस सुझाव भी दिए जा सकेंगे। सरकार को विधायकों की व्यापक विशेषज्ञता, जनता के साथ उनके गहरे संपर्क और जमीनी स्तर पर उनके संवाद का सीधा लाभ मिलेगा।

समितियों की संरचना और कार्यप्रणाली:
प्रत्येक सलाहकार समिति में 16 विधायकों को शामिल किया गया है। ये समितियां नियमित बैठकों के माध्यम से संबंधित विभागों के मंत्रियों के सीधे संपर्क में रहेंगी। विधायकगण अपने क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप मंत्रियों को महत्वपूर्ण सुझाव देंगे। इन सुझावों पर सरकार गंभीरतापूर्वक विचार करके अंतिम निर्णय लेगी और प्रभावी कार्ययोजना तैयार करेगी, जिससे क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार योजनाओं का निर्माण और कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा। इस पहल से विधायकों का मनोबल और उत्साह भी बढ़ेगा। इन समितियों के सदस्यों को एक वर्ष के बाद परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे अन्य विधायकों को भी इस प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर मिलेगा।

अधिकारियों को विधायकों को सम्मान देने और सूचनाएं साझा करने के निर्देश:
विधानसभा अध्यक्ष ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि अक्सर यह शिकायतें मिलती हैं कि अधिकारी विधायकों को अपेक्षित सम्मान नहीं देते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, उन्होंने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि अब से सभी अधिकारी, चाहे वे कितने भी वरिष्ठ क्यों न हों, विधायकों का स्वागत करेंगे और उन्हें समान स्तर पर कुर्सी पर बैठाएंगे। उन्होंने कहा कि विधायक जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं और अधिकारियों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे विधायकों को हर आवश्यक सूचना समय पर उपलब्ध कराएं, ताकि वे अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकें।

विधानसभा की अन्य महत्वपूर्ण समितियां और कार्यवाही का रिकॉर्ड:
विधानसभा में इन 30 सलाहकार समितियों के अतिरिक्त 18 अन्य महत्वपूर्ण समितियां भी कार्यरत हैं, जिनके पास सुनवाई, जांच और निर्णय लेने का अधिकार है। इन समितियों की नियमित बैठकों का सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है। इसके अतिरिक्त, विधानसभा की कार्यवाही के दौरान सभी विधायकों के प्रश्न, वक्तव्य, कार्य और व्यवहार को विधिवत रूप से रिकॉर्ड किया जाता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

धर्मशाला में राष्ट्रीय सम्मेलन:
इन सलाहकार समितियों की कार्यप्रणाली को और अधिक सुदृढ़ करने और अन्य राज्यों के अनुभवों से सीखने के लिए, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 29 और 30 मई को एक महत्वपूर्ण सम्मेलन प्रस्तावित है। इस सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष और विधायक भाग लेंगे। इस दो दिवसीय मंथन में इस बात पर विचार किया जाएगा कि किस प्रकार विधायिका को और अधिक मजबूत बनाया जा सके, जनता के बीच उसका सम्मान बढ़ाया जा सके और लोकतंत्र को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

विधायकों की योग्यता और विशेषज्ञता:
विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी रेखांकित किया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के माननीय सदस्य योग्यता और विशेषज्ञता के मामले में किसी से भी कम नहीं हैं। वर्तमान विधानसभा में 18 डॉक्टर, 19 प्रबंधन विशेषज्ञ, 15 तकनीकी डिग्री धारक, 15 पीएचडी, 85 लॉ ग्रेजुएट और 15 पूर्व आईएएस, आईपीएस तथा पीसीएस अधिकारी शामिल हैं। इन सदस्यों की अद्वितीय कुशलता और अनुभव के आधार पर ही उन्हें विभिन्न सलाहकार समितियों में जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिससे संबंधित विभागों को उनकी विशेषज्ञता का भरपूर लाभ मिल सके।

यह पहल उत्तर प्रदेश की विधायी प्रक्रिया में एक नया अध्याय जोड़ेगी और उम्मीद है कि यह सरकार और विधायकों के बीच समन्वय को मजबूत करते हुए प्रदेश के विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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